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________________ छट्टो संधि घत्ता-उसके इन वचनोंको सुनकर दूत भेजे गये, जो वहाँ पहुँच गये कि जहाँ उत्तर द्वारपर पुनोत्तर विद्याधर था || [३] विज्ञान विनय और नीतिवान् भन्जियाने पुष्पोत्तर विद्याधरसे कहा, "हे परमेश्वर, इतना अशान्तिभाव क्यों ? सब कन्याएँ दूसरेकी भाजन होती हैं। नदियाँ पहाड़ोंसे निकलकर पानी समुद्र में ढोकर ले जाती हैं। हाथीके सिरसे मोतियोंकी माला बनती है, परन्तु शोभा बढ़ाती है, दूसरे मनुष्यों की ! धाराएँ मेघोंसे जल ग्रहण कर नव तरुवरोंके अंगोंको सोचती हैं। महासरोवरके मध्यमें उत्पन्न होकर भी कमलिलियाँ खिलती हैं. दिवाकरसे। इसमें श्रीकण्ठ कुमारका क्या दोष ? तुम्हारी कन्याने स्वयं उसका वरण किया है ?" यह सुनकर पुष्पोत्तर लज्जासे' गड़ गया। उसका मान और अहंकार दूर हो गया ॥१-८॥ पत्ता-कन्यादान किसके लिए? यदि वह न दी जाय तो कलंक लगा देती है । क्ष्यकालकी दीपशिखाकी भाँति कन्या स्वभाषसे मलिन होती है ।।२। ___ [४] इस प्रकार कहकर नराधिपति चला गया, श्रीकण्ठने कमलावतीसे विवाह कर लिया। बहुत दिनोंके बाद पिताके लिए व्याकुल अपने सालेको जानेके लिए इच्छुक, देखकर कीतिधवल सद्भावसे कहता है, "तुम मेरे प्राणप्रिय अपने आदमी हो, इसलिए इस प्रकार रहो जिससे तुम्हारा मुख-कमल दूर न हो, क्या तुम्हें इतनी सम्पदा पर्याप्त नहीं है ? मेरे पास अनेक बड़े बड़े द्वीप हैं, हरि, हणुरुह, हंस, सुबेल, धर, कुश, कंचन, कंचुक, मणिरत्न, छोहार, चीर, वाहन, वन, बच्चर, वज्जरगिरि, श्री, तोयावलि, सन्ध्याकार गिरि, बेलन्धर, सिंहल, चीणवर, रस, रोहण, जोहण और किष्कधर ॥१-८॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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