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पउमचरिउ
घत्ता णिसुणे वि ते तहउ अयणु पेसिय दूय पत्राइन तेसहें। उत्तर-चार परिट्रियउ पुष्फोसरु विनाहरु जेसहें ॥९॥
विषणाण-विणय-यवन्तऍहि । विजाहरु बुत्तु महन्तएँहि ॥१॥ 'परमेसर एत्थु अ-वन्ति कर। सम्बड करणउ पर-मायण ॥२॥ सरियज णीसरेवि महाँहरहो। डोयन्ति सलिनु रयणायरहों ॥३॥ मोत्तिय-मालउ सिर कुअरहों। संबसोह देन्ति अंग्णही गरहों ॥४॥ धाराउ लेवि जलु जलहरहों। सिलतिर शव समदहो ।' उपयवि मझे महा-सरही। गालिणिउ वियसन्ति दिवायरहो ॥६ सिरिकण्ठ-कुमारहों दोसु कर। तउ दुहियएँ लइर सयम्बरउ' ॥७॥ संणिसुणधि पारषद लजियउ। थिउ माण-मडाफार-वधियउ ॥८॥
घत्ता 'कपणा दाणु कहिं (1) तणउ जहण विष्णु तो सुद्धिहि चढावह। होई सहावे महाणिय केय-काल दीषय-सिह भाषई' ॥९॥
गड एम भणेचि राहिवइ । सिरिकण्ठं परिणिय परमवह ॥१॥ वह-दिवस हि उम्माहय-जणणु । णिय-साल पेक्रवि गमण-मणु र सम्मा भणह कित्तिधवलु। 'जिह दूरीहोइ ण मुह-कमलु ॥३ तिह अह हुँ मजण पाण-पिय । कि दिदि ण पहुचा एह सिय ॥५॥ मह अस्थि अणेय दीव पवर। हरि-हणुरुह-हंस-सुधेल-धर ॥५॥ मुस-जण-कनुअ-मणिग्यण । छोतार-चीर-चाहण-जवण पा६॥ पवर-वजर-गीरा वि सिरि। सोयावलि-सम्झागार-गिरि ॥७॥ वेसन्धर-सिकल-चीणवर रस-रोहण-जोहण-
किधर ॥॥