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________________ छटो संधि [१] देव क्रीड़ाके साथ राज्य करते और लंकाका परिपालन करते हुए एक दिन कौतिधवल के पास महादेवी लक्ष्मीका भाई विद्याधर, श्रीकण्ठ नामका, राजाका साला, रचनूपुर नगरसे अतिथि बनकर आया, अपनी स्त्री मन्त्री सामन्त और सेनाके साथ। फीर्तिधवल उसके सामने आया तो उसने प्रणामपूर्वक उसका समादर किया और दोनों एक आसन पर बैठ गये। इतने में अश्व, गज और रथों पर आरूढ़, अचानक शत्रु आ गया। उसने चारों द्वार अवरुद्ध कर लिये। छत्र ध्वज और चिह्न दिखाई देने लगे। बजते हुए युद्धके तूर्य मुनाई दे रहे थे। अश्व हिनहिना रहे थे और गज चिग्घाड़ रहे थे। दुर्वार सैकड़ों वैरी रुद्ध थे, उलाहना देते, चिढ़े हुए और पुकारते हुए ॥१-९॥ पत्ता- उस शत्रुसेनाको देखकर श्रीकण्ठने कीर्तिधवलको धीरज बंधाया, कि जब तक मैं युद्ध में विपक्षका तीरोंसे छिन्नभिन्न नहीं कर दूँगा, तब तक जिनवरकी जय नहीं बोलूंगा ॥१०॥ [२] श्रीकण्ठका मुखकमल देखकर, उसकी पत्नी कमलाने कीर्तिधवलसे कहा, क्या आप नहीं जानते कि विद्याधर श्रेणीमें धन और स्वर्णसे भरपूर मेघपुर नगर है। उसमें पुष्पोत्तर नामक विद्यापति राजा है। मैं उसीकी कमलावती नामकी कन्या हूँ। एक दिन मैं सहसा घूमने के लिए चमरधारिणी स्त्रियोंके साथ निकली । उस अवसर, सुमेरु पर्वनके धवल और विशाल जिनमन्दिरोंकी वन्दनाके लिए, विमान सहित आते हुए देखकर, मैंने नेत्ररूपी कमलकी माला डाल दी। और उसी समय मेरा पाणिग्रहण हो गया । अब विना किसी कारण युद्ध क्यों ! अपनी-अपनी सेनाओंको नष्ट न करें, उसके पास मन्त्रियोंको भेजा जाय" १-८॥ का
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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