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________________ ९८ सुर की रज्जु करताहो । एकहि दिर्गे विजाहर पत्ररु । पउमचरिउ [1] लङ्काउरि परिपालन्ताहो ॥११॥ लच्छो-मही एविहें माइ-रु ||२|| रणरह आइड पाहुणउ ॥ ३३॥ वहाँ अमुहु भाउ किविलु ॥ ४ पुणु थि एक्कासणे वसरें वि ॥५॥ अस्थकऍ पारउ पछि ||५|| दि छत्त-य-चिन्धाएँ ॥०॥ हय- हिंसिथ गय वर- गजिया हैं ॥ ८ ॥ पच्छारिय-वारिय कोरियहूँ || ९ || सिरिकण्ठ-णामु णिव- मेहुणउ । सकल स-मन्ति सामन्त-बलु तु सपणामु समाइच्छित करेंवि । एत्थन्त इय-ग-रह- चदि । मायार विचार रुहाएँ । णिसुयहँ रणन्तूर हूँ वज्जियहूँ । दुम्बार बरि-सय- रोक्किई । धत्ता सं पेक्खेविष्णु चरिषलु कितिधवलु सिरिकण्ठे भीरिज | 'ताव ण जिणवरु जय भगमि जाव ण रणे विक्खु सर-सीरिड' ||११|| [R] लिरिकण्टहों जोऍषि मुह-कमलु । 'किं ण मुणहि घण- कञ्चन उरु । सहि पुष्फोत्तर विज्जाहिब । उबेलें बिगोसरिय । । सहि अवसरे घबल-विसाला हूँ । स विमाणु एन्तु पहें नियत्रि सहूँ तय हुँ ज जाट पाणिग्गाहृणु । भागिय यि सेण्ण गिट्टष हो । - कमळाऍ पत्तु कित्तिधवलु ||१|| विज्जाहर से विहिं मेहरु ॥२॥ तहाँ तणिय दुहिय हउँ कमलमङ्ग ॥ ३ ॥ मरहरिडि पारिहिं परियरिय ||४|| पिणु मेरु- जिणाला हूँ ||५|| घत्तिय जयगुप्पल - माफ़ माँ ॥ ६॥ एवहि शिकार काई रशु ॥ ॥ सहीं पातु महन्ता पट्टवहीं ॥८॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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