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भार-मरकखम - भीम-तढ मित्रापि धम्मु जिह
पउमचरित्र
सिरिकण्ठों ताम सन्ति कहह । अहिँ चिक्कु महीहरु डेम-दलु । पचलङ्कुरु इन्दणील-गुठिल । मुन्नाहल-जल-तुसार दरि । श्रहिणव कुसुमहँ पक्क फलई । जहि दृश्य रसाळ दोडियउ । जहिं णाणा कुसुम-करग्वियहूँ । जहिं भ्रष्ण फल- संदरिसियहूँ ।
মূলা
एय महारा दोन विचिता । जं भाव से गेहहि मिया ॥९॥
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'कि वहचें वाणर-दीउ छइ ॥१॥ विष्फुरिय महामणि- फलिह सिलु ॥१ सकिन्गीर-विहार- पहलु ३७ जहिं देसु चि वासु जे अणुसरिंतु ॥ ४ ॥ कर गेहूँ पाइँ फोप्फल हूँ ॥५॥ गुलियट अमरेहि मि हि [य] उ ।। ६ सीयल हूँ जलहूँ अलि चुम्बियहूँ ॥ ७ ॥ धरणिहे अङ्गाई व हरिसियाँ ॥८॥
घन्ता
तं निसुर्णेवि तोसिय-मण देवागमणहों अणुहरमाण माय-मासह। पदम-दिणें
तहिँ सिरिकण्हें दिष्णु पाउ ॥९॥
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द्वेष्पिणु लवण समुद्द-जलु | बाणर-दीड पट्टु बल्लु ॥ १ ॥ जहि कुहिणिय रषिकन्त पहउ । सिहि-सङ्कऍ उपरि ण देह पत्र ॥२॥ जहिं वाचित घडला मोइयज । सुर-सङ्कऍ परेण प जोइयउ ॥३॥ जहि जल गाति विशु पङ्कहिँ । पङ्कय पाहि बिणु छप्पऍहि ॥ ४ ॥ कहि वणइँ पहि विणु अम्बऍहि | अम्वा षि णाहि विणु गोहिं ॥ गोच्छा व हि विशु कोइलें हिं । कोइ णाहि विणु कलयले हिं ॥ जहिं फलइँ णाहि विणु तरुवरेंहि । तहवर षि प्याहि विणु व्यहरे हिं ॥७॥ छयहरहूँ णाहिँ विकुसुमियहूँ। जहिं महुयर-विन्दहूँ ण भमियहूँ ॥८