SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ भार-मरकखम - भीम-तढ मित्रापि धम्मु जिह पउमचरित्र सिरिकण्ठों ताम सन्ति कहह । अहिँ चिक्कु महीहरु डेम-दलु । पचलङ्कुरु इन्दणील-गुठिल । मुन्नाहल-जल-तुसार दरि । श्रहिणव कुसुमहँ पक्क फलई । जहि दृश्य रसाळ दोडियउ । जहिं णाणा कुसुम-करग्वियहूँ । जहिं भ्रष्ण फल- संदरिसियहूँ । মূলা एय महारा दोन विचिता । जं भाव से गेहहि मिया ॥९॥ [ ५ ] 'कि वहचें वाणर-दीउ छइ ॥१॥ विष्फुरिय महामणि- फलिह सिलु ॥१ सकिन्गीर-विहार- पहलु ३७ जहिं देसु चि वासु जे अणुसरिंतु ॥ ४ ॥ कर गेहूँ पाइँ फोप्फल हूँ ॥५॥ गुलियट अमरेहि मि हि [य] उ ।। ६ सीयल हूँ जलहूँ अलि चुम्बियहूँ ॥ ७ ॥ धरणिहे अङ्गाई व हरिसियाँ ॥८॥ घन्ता तं निसुर्णेवि तोसिय-मण देवागमणहों अणुहरमाण माय-मासह। पदम-दिणें तहिँ सिरिकण्हें दिष्णु पाउ ॥९॥ [3] द्वेष्पिणु लवण समुद्द-जलु | बाणर-दीड पट्टु बल्लु ॥ १ ॥ जहि कुहिणिय रषिकन्त पहउ । सिहि-सङ्कऍ उपरि ण देह पत्र ॥२॥ जहिं वाचित घडला मोइयज । सुर-सङ्कऍ परेण प जोइयउ ॥३॥ जहि जल गाति विशु पङ्कहिँ । पङ्कय पाहि बिणु छप्पऍहि ॥ ४ ॥ कहि वणइँ पहि विणु अम्बऍहि | अम्वा षि णाहि विणु गोहिं ॥ गोच्छा व हि विशु कोइलें हिं । कोइ णाहि विणु कलयले हिं ॥ जहिं फलइँ णाहि विणु तरुवरेंहि । तहवर षि प्याहि विणु व्यहरे हिं ॥७॥ छयहरहूँ णाहिँ विकुसुमियहूँ। जहिं महुयर-विन्दहूँ ण भमियहूँ ॥८
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy