SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -- राजा सगरके साठ हजार पुत्र हुए, जो समस्त कलाओं और विज्ञानमें निपुण थे । एक दिन वे कैलासके जिनमन्दिरोंके दर्शन करनेके लिए गये। भरतके द्वारा बनवाये गये मणि और स्वर्ण'मय चौबीस मन्दिरोंकी वन्दना कर अत्यन्त विचक्षण भगीरथ कहता है कि जिनमन्दिरोंकी रक्षाके लिए कुछ करना चाहता हूँ। गंगाको निकालकर मन्दिरोंके चारों ओर घुमा दिया जाये, इसका दूसरे हजारों भाइयोंने समर्थन किया ॥१-८।। घत्ता-उन्होंने दण्डरलका चिन्तन कर, धरती खोदते हुप घुमा दिया, जैसे उसने पातालगिरिका विकट उरस्थल फाड़ दिया ॥९॥ [११] नागलोकमें उसी समय क्षोभ उत्पन्न हो गया। धरणेन्द्रके हजारों फन डोल उठे। उसने अपनी विषैली दृष्टिसे देखा उससे सब कुछ राखका डोर हो गया। भीम और भगीरथ किसी प्रकार उसकी दृष्टि में नहीं पड़े इसलिए ये दोनों बच गये। दुर्भन दीनमुख वे लोटे और शीघ्र ही साकेत नगर पहुँचे। तब मन्त्रियोंने कहा, "किसी प्रकार ऐसे रहस्यका उद्घाटन करो जिससे राजाके प्राण-पखेरून उड़े।" एक ऐसा समा मण्डप बनाया जाये जिसमें आसनसे आसन सटे हों, और मेखलासे मेखला लगी हो, हारसे हार, तथा मुकुट से मुकुट । सगर राजाके आसनके समान बैठनेके लिए बानबे हजार आसन बनाये जायें ।।१-सा धत्ता-व्याकुल चित्त राजा सब स्थानको देखता है कि साठ हजार पुत्रों में से एक भी पुत्र नहीं आया है ॥१॥ [१२] इतने में भीम और भगीरथने प्रवेश किया। वे अपनेअपने आसनपर जाकर बैठ गये। तब राज्यका पालन करनेवाले भगीरथने पूछा, "किस कारणसे दूसरे पुत्र नहीं आये ? उनके बिना ये आसन शोभाहीन हैं, और हैं निर्धूत
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy