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पडमचरित
सठि सहास हुय घर-पुत्तहुँ । सयल-कला-विष्णाण-णिउस? ॥१॥ एक दिवसें जिण-भवण-णियासहौँ । धन्द्रण-हसिएँ गय कहलासह ।।५।। भरह-कियई मणि-कशण-माण ! अबीस मिनरदेनियण शा भणइ भईरहि सुख बियक्रमणु। करहुँ कि पि जिण-भषणहुँ रक्खणु ।।।। कठेवि गा भमाहहुँ पासें हिं। तं जि समस्थिङ भाइ-सहासे हि ।।
घत्ता दण्ड-स्यणु परिचितवि खोणि खणन्तु ममाडिड । पायालइरह प्याई वियव-उरस्थलु फाडिउ ।।९।।
[ ] ताखणे खोड जाउ बहि-सोयहाँ। धरणिन्दही सहास-का-दोयहाँ ॥१॥ भासीविस-दिट्ठिएँ णिवपत्तिय । सयस वि छारहों पुजु पसिष ॥२॥ कह वि कह विण वि दिहिहि पढिया। भीम-मईरहि थे उम्बरिया ॥३॥ दुम्मण दीण-वरण परियता । लहु सोय-णयरि संपत्ता ॥४॥ मन्तिहिं कहिउ 'कहवि सिह मिन्दही । जिह उम्मि ण पार गरिन्दहीं। ताम सहा-मण्ड मण्डिज । भासणु भासणेण पाहिज्जा ।। मेहलु मेहरूण भाक। हारे हार मछु मउगे ॥णा सयर पारिन्दासण-संकासाई। घइसणाहू वाणवह सहासा ॥४॥
घत्ता णावह आउल-चित्त सम्वत्थाणु विहावई । सठि सहास? माझे एकु वि पुतु ण भावह ॥१॥
[१] भीम-भईरहि ताम पझ्छा। णिय-णिय-आसणे गम्पि णिविठ्ठा।।। पुष्ट्रिय पुणु परिपाहिय-रो। 'इयर ण पसरम्ति कि फों ॥२॥ तेहि विणासमाई विष्ाय। तामरसाई व णिश्यगाय।।३।।