SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चमी संधि सरोवरपर पहुँचती है कि इतने में उसे पृथ्वीश्वर सगर दिखाई देता है ॥१-८॥ पत्ता वह कामबाणोंसे आहत हो जाती है और एक भी पग नहीं चल पाती। वह राजाको इस प्रकार देखती है जैसे स्वयंवरमाला ही डाल दी हो ॥९॥ [4] किसीने जाकर सहस्रनयनसे कहा, "क्या आपने यह कुतूहुल नहीं देखा, एक कामदेयके समान युवक है, नहीं मालूम किस देशका राजा है, उसे देखकर तुम्हारी बहन काममहसे पीड़ित हो उठी हैं यह सुनकर सहवनयन बुलाकर हा गया, और भीतर ही भीतर आनन्दसे नाच उठा, ज्योतिषियोंने जो कहा था, निश्चय ही यह उसी राजा सगरका आगमन है। यह सोचकर उसका चेहरा खिल गया। वह तुरन्त वहाँ गया, जहाँ सगर था। उसे चौंसठ लक्षणोंसे युक्त पूर्ण चक्रवर्ती राजा सगर आनफर सिरपर हाथ ले जाकर, सहस्रनयनने जयकार किया। उसे कन्या देकर नगरमें प्रवेश कराया ॥१-८॥ ___ छत्ता-विद्याधरोंसे घिरे हुए उसने भवनमें लीलापूर्वक प्रवेश किया। सन्तुष्ट होकर उसने उच्चरन्दक्षिण श्रेणी उसे प्रदान की ।।२।। [६] सगर तिलककेशाको लेकर चला गया। उसने अयोध्या नगरीमें प्रवेश किया। सहस्रनयनने भी अपने पिताके वैरकी याद कर, विद्याधर सेनाको इकट्ठी कर, उस घूणेघनके ऊपर आक्रमण किया, जिसने उसके पिता सुलोचनके प्राणोंका अपहरण किया था। रथनूपुरचक्रयालपुर में युद्ध में पूर्वमेघ मारा गया। उसका पुत्र जो तोयदवाहन था, वह युद्धके बीच किसी प्रकार नहीं मरा । वह सन्तुष्ट मन अपने हंसविमानमें बैठकर वहाँ गया, जहाँ अजित जिनेन्द्रका समवसरण था। इन्द्रने उसे अभय वचन दिया। उसने शत्रुसहित अपना सारा
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy