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________________ पञ्चमो संधि घत्ता-चार निकायोंके देषोंके आनेपर कलियुगके पापोंसे रहित अजित जिनने तुरन्त दस हजार मनुष्योंके साथ दीक्षा प्रहण कर ली || [३] छठा उपवास करनेके अनन्तर आदरणीय अजित ब्रझदत्तके घर पहुंचे। ऋषभनाथ के समान आहार ग्रहण कर और चौदह वर्ष तक विदार कर उन्होंने अपना निर्मल शुक्लध्यान पूरा किया । फिर उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। आठ प्रातिहार्य और समवसरण, तथा जिस प्रकार ऋषभ के लिए देवागमन हुआ था उसी प्रकार इनके लिए भी हुआ। गणधर और कामरूपी मल्लका विनाश करनेवाले बाहुओंसे युक्त नौ लाख साधु (उनके शा । इसी चपसार 'अपसागरका, जो शिंजयका पुत्र और जितशत्रुका भाई था, सगर नामका सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ। भरतके समान ही नौ निधियों और चौदह प्रकार के मुख्य रत्नोंसे युक्त था ॥१-८|| घत्ता--एक दिन समस्त धरसीका पालन करनेवाले उसे (सगरको) उनका चंचल घोड़ा उसी प्रकार अपहरण करके ले गया, जिस प्रकार जीवको कर्म ले जाता है ।।९।। [४] वह दुष्ट घोड़ा, चंचल कान्तिघाले पश्चिम भागमें भाग फर एक सूने जंगलबाली महादवीमें प्रवेश करता है। उस अटवीको देखकर कलिकालफा भी हृदय दहल उठता था। राजाने बड़ी कठिनाईसे घोड़ेको वशमें किया, जैसे जिनेन्द्रने कामदेवको वशमें किया हो। इतने में उसे कमलोंसे युक्त महासरोवर दिखाई देता है, जिसकी तरंगें चंचल थीं, और जल लहरोंसे भंगुर था। वहाँ लतामण्डपमें उतरकर, पानी पीकर और बोडे. को स्नान कराफर जैसे ही वह सन्ध्याकालका थोड़ा-सा समय बिताता है, वैसे ही तिलककेशा वहाँ आती है, बलयान सुलोचन की कन्या और सहस्रनयनकी सगी बहन । वह सहेलियोंके साथ
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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