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________________ पञ्चमो संधि [१] बहुत समय बीत जानेपर अयोध्यामें राजाओंकी वंशपरम्पराका वृक्ष उच्छिन्न हो गया। तब विमल इक्ष्वाकुवंशमें सौन्दर्यसे सम्पूर्ण धरणीधर नामका राजा हुआ । उसके दो पुत्र हुए, एक नामसे त्रिरथंजय और दूसरा जितशत्रु, जो युद्ध प्रांगण में अजेय थे । उसकी विजया नामकी सुन्दर स्थूल बेलफलके समान स्तनांवाली पत्नी थो । उसके गभसे भवभयका नाश करनेवाले आदरणीय अजित जिन उत्पन्न होंगे। ऋषभनाथी तरह जो रत्नवृष्टि के निमित्त थे। उन्हीं के समान सुमेरु पर्वतपर अभिषिक्त हुए | ऋषभकी भाँति बालक्रीड़ामें स्थित थे, ऋषभके समान ही उन्होंने लीलापूर्वक विवाह किया। ऋषभके समान उन्होंने स्वयं राज्यका उपभोग किया, एक दिन नन्दनवनके लिए जाते हुए ॥८॥ पत्ता-हवासे चंचल एक सरोवर देखा, जिसमें कमल खिले हुए थे, वह ऐसा लग रहा था मानो विलासिनी-लोक ही हाथ ऊँचे किये हुए नाच रहा हो ॥२॥ [२] उसी सरोषरको उसी वनालयमें, जब जिनाधिपने सायंकाल देखा तो उसके कमल कुम्हला चुके थे, उसके दल मुकुलित हो गये थे, जैसे अपना मुख नीचा किये हुए दुर्जनजन ही हों । यह देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ--"लो लो प्रत्येक जन्म लेनेवाले जीवकी यही दशा होगी। पूर्वाहमें जो जीवित दीख पड़ता है, वह अपराष्ट्र में राखका ढेर रह जाता है, जिस नरश्रेष्ठको लाखों लोग प्रणाम करते हैं, वहीं प्रभु मरनेपर स्मशानमें ले जाया जाता है। जिस प्रकार सन्ध्यासे यह कमलवन, उसी प्रकार जरासे यौवन नष्ट होता है । यमसे जीव, आगसे शरीर, समयसे शक्ति, विनाशसे ऋद्धि नाशको प्राप्त होती है । जब आदरणीय अजिस जिन यह सोच ही रहे थे कि लौकान्तिक देवोंने आकर उन्हें प्रतिबोधित किया।॥८॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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