________________
पउमचरित
तहि ज भउमहि वहब कालें । उच्छाणे णस्वर-तर-जाले ॥१॥ विमलेकबुकचस उप्पण्ण: । धरणीधरु सुरूव-संपप्पड ॥२॥ तासु पुत्तु पामें तियसअउ । पुणु जियसत्तु रणगणे दुजउ ॥३॥ तामु विजय महयि मणोहर। परिणिय थिर-मालर-पओहर ||४|| साई गम्भं भव-भय-खग्र-गारउ । उप्पजइ सुब अजिय-मडारउ ॥५॥ रिपहु जैम वसुहार-णिमिन्नउ । सिहु जम मेरुहि अहिसित्तउ ॥६॥ रिसटु जेम घिउ चालक्कीलप। रिस? जेम परिणाविउ लीलए ॥७॥ रिसट्ठ जेम रज्जु इ भुन्त। एक-दिवस णदणवशु जन्सें ॥॥
घत्ता
पवणुद्धउ सरु दिट्ठ जाई विलासिणि-कीउ
पफुधिय-सयवत्तउ । उकिमय-करु णचन्तउ |॥२॥
सो जि महासरु तहि ज वगाला। दिह जिणाहिवण तालए ॥॥ मलिय-दल विच्छाय-सरोरुहु । णं दुजण-जणु भोल्लिय-मुहु ॥३॥ तं णिएवि गउ परम-विसायहीं। 'कइ एह जिगह भीयहाँ जायहाँ ॥३॥ जो जीवन्तु दिट्ट पुब्वण्हएँ। सो अङ्गार पुजु भयरहए ॥४॥ जो णरवर-छपरहि पविजह । सो पहु मुउउ अवार णिज्जद ॥५॥ जिह समझाएं एड पङ्कय-वणु। तिह जराय, घाइज जोवणु ॥६॥ जीविउ जमेण सरीरु हुआसे। सत्तई कालें रिद्धि विणासें ॥ult चिन्वह एम भटारड जावे हि कोयम्सियहि विवोहिउ ताहि ॥