SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + संधि और मुड़ने लगे । महारथ चकनाचूर किये जाने लगे, हयवर चूर होकर लोटने लगे। तीरोंसे छिन्न-भिन्न और रक्तरंजित, दोनों सेनाएँ मानो कुसुम्भीरंग से रंग गयीं ॥१-८|| पत्ता - सेनाओंको नष्ट होते और धरतीपर गिरते हुए देखकर मन्त्रिश्रोंने रोका कि मत लड़ो, बेचारे योद्धाओंके बसे क्या ? अच्छा है यदि दृष्टि-युद्ध करो ||९|| [९] पहले दृष्टियुद्ध किया जायें, फिर जलयुद्ध और मल्लयुद्ध । जो तीनों युद्ध आज जीत लेता है, तो उसकी निधियों, उसके रत्न और उसीका राज्य । यह सुनकर, दोनों सेनाएँ बड़ी कठिनाई से हटायी गयीं। उन्होंने शीघ्र ही दृष्टियुद्ध प्रारम्भ किया, ( जिननन्दा और सुनन्दाके पुत्रोंने )। पहले भरतने अपने भाई को देखा, मानो कैलासने सुमेरु पर्वतको देखा हो । उसकी काली, सफेद और लाल दृष्टि ऐसी लग रही थी मानो कुवलय कमल और अरविन्दोंकी वर्षा हो । उसके बाद बाहुबलिने देखा, मानो सरोवरमें कुमुद-समूहको दिनकरने देखा हो । उनके ऊपर-नीचे मुख ऐसे जान पढ़ते थे मानो उत्तम वधुओंके मुखकमल हों ॥१८॥ घत्ता - भौंहोंसे भयंकर ऊपरकी विशाल दृष्टिसे नीचे की दृष्टि पराजित हो गयी, मानो नवयौवनवाली चंचल चित्त कुलवधू सासके द्वारा डाँट दी गयी हो ॥९॥ ५३ [१०] जब भरत दृष्टि-युद्ध न जीत सका, तब क्षणार्ध में जलयुद्ध प्रारम्भ कर दिया गया। पृथ्वीका राजा भरत और पोदनपुरका राजा बाहुबलि दोनों जलमें घुसे, मानो मानस सरोवर में ऐरावत गज घुसे हों। इसी बीच, धरती के स्वामीने ईर्ष्या के साथ पानीको हिलाया और भाई पर धारा छोड़ी, मानो समुद्रको बेला महीधर पर छोड़ी गयी हो। वह धारा शीघ्र ही बाहुबलिके वक्षस्थल पर पहुँची, और असती श्री की
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy