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________________ पडमचरित परचिय(?) वर तोय सुमार-धवल । णं णहें तारा-पिउरुम्द बहल ॥६॥ पुणु पच्छा पाहुवलीसरण। आमल्लिय सलिल-अमलेगा ॥७॥ उडाइय चल-णिम्मल-ता। णं संचारिम मायास गा ॥८॥ घत्ता मोहटिङ भरहेसर थिउ मुह-कायर गरुअ-रहाल लइया । सुरवात-नियम विर- भागुबगुपचइयउ ॥९॥ जंजिण विण सक्किड सकिल-झुन्छ। पारधु पडीवउ मल्ल-जुन्छ ॥३॥ भावील-विकच्छउ घल-महल। अक्वाडएँ जाइँ पट्ट मल्ल ॥२॥ श्रोवग्गिय पुणु किय पाहु-सद भिडिय सुबन्त-तियन्स सह ॥३॥ बहु-बन्धहि हुकर-कत्तरीहि ।। विग्णाणहि करणहि मामहि ॥४॥ सहुँ भरहें मुहरु करवि वाम् । पुणु पच्छ दरिसिउ णियय-यामु ||५|| 'उच्चाइड उभय-करहि गरिन्तु ।। सकेण व जम्मणे जिण-वरिम् ॥६॥ पत्थन्सर वाहुवलीसरासु । आमेलिट देव हि कुसुम-वासु ७॥ कित कलयत साहणे विजउ घुटू । णरणाहु विलक्षीहूड सस ॥४॥ पत्ता चक्र-स्यणु परिचिन्तड उपरि घत्तिउ घरम-रेहु से पश्चिद । पसरिय-कर-णिउहम् दिणयर-विम्चे णाई मैरु परिमश्रित ॥९॥ [ २ ] जं मुकु चा चक्केसरेण चिन्तित वाहुबलीसरेण ॥ 'किं पहु अकालमि महिहि अजु । णे णं विगाथु परिहरमि रक्षु ।।२।। रमही कारण किज भजुसु । धाएवउ भाएक वणु पुसु ॥३॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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