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________________ celesto पर्वत की उत्तर दिशा में हेमवत पर्वत है वहाँ के मनुष्यों की आयु एक पल्य एवं शरीर का प्रमाण एक गव्यूति है, वह भोगभूमि जघन्य होने पर भी श्रेष्ट सुखों की खान मानी गई है। महाहिमवन्त पर्वत, हरि वर्ष, क्षेत्र, निषष्धपर्वत, पूर्व एव अपर विदेह, रम्यक् हैरण्यवत् तथा ऐरावत क्षेत्र, लवणोदधि, धातकीखण्ड कालोदधि समुद्र, पुष्करार्द्ध द्वीप, मानुषोत्तर पर्वत आदि स्थानों का भी विशेष वर्णन किया गया है। सभी द्वीपों में सूर्य चन्द्रमा आदि की संख्या एवं उनकी स्थिति आदि के बारे में बतलाने के बाद कहा गया है कि ढाई द्वीप के बाहर भी अन्धकार का नाश करने वाले चन्द्र, सूर्य एवं नक्षत्र घटाकार रूप में हाथी के समान विचरण करते हुए वहाँ तक स्थित हैं, जहाँ तक कि स्वयंभूरमण समुद्र पार होता है। - सन्धि - 6 : जम्बूद्वीप के सुरम्यनामक देश में पोदनपुर नाम का प्रमुख नगर है, जिसमें सूर्य के समान तेजस्वी अरविन्द नाम का राजा रहता था । उस राजा का विश्वभूति नामक नीतिश्रेष्ठ मंत्री था। उसकी अनुन्धरी नाम की शुद्ध शीलवती भार्या श्री उसके कमठ और मरुभूति नामक दो पुत्र थे जो क्रमशः कुबुद्धि और सुबुद्धि से युक्त थे। उस कमठ की वरुणा नाम की भार्या थी, जो अनेक सुखों की खान और मधुरभाषिणी थी परन्तु मरुभूति की पत्नी वसुन्धरी कुटिल चितवाली एवं चंचल यौवन के मद से मत्त रहती थी। एक दिन कमठ ने अनुजवधू वसुन्धरी को देखा और उसमें आसक्त हो गया। वह भ्रष्ट स्त्री भी उसमें आसक्त हो गई और समय पाकर कमठ ने उसका शीलभंग कर दिया। उपर्युक्त वृत्त जब राजा को ज्ञात हुआ तब राजा अत्यधिक कुपित हुआ । उसने मभूति से कहा कि " तुम्हारा भाई कुशील है। उसे मैं नगर से निकालता हूँ ।" तब मरुभूति ने कहा " हे नरेन्द्र ! तुम्हें किसी पापी ने झूठ कह दिया है, वह माननीय नहीं हैं, अयुक्त है।" इस प्रकार मरुभूति के भाई के प्रति स्नेहसिक्त वचन सुनकर राजा ने उसका उल्लघंन नहीं किया किन्तु दूसरे दिन राजसेवकों द्वारा राजा से यह कहे जाने पर कि "हमने कमठ को सुरा आरुढ़ देखा है "राजा अत्यन्त रुष्ट हुआ और उसने कमठ को अत्यधिक अनादरित कर नगर से बाहर निकाल दिया। - निष्कासित होने पर कमठ वन में पहुँचा, वहाँ उसने शैव तापसों के समूह को देखा । तत्र कमठ ने उन तपस्वियों के स्वामी को प्रणाम किया और पूछे जाने 161 25 బోట (5) Sexsxsx
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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