SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जानकर प्रकाशित किया गया। यह लोक चादह राजू प्रमाण ऊँचा है और इसका क्षेत्रफल 343 धनराज है। उसी के मध्य में बसनाड़ी है, वह सर्वत्र त्रस जीवों से भरी हुई है। दुखनाशक जिन भगवान ने उसके बाहर के क्षेत्र को पाँच प्रकार के स्थानों से भरा हुण कड़ा है। गागान्तिक केवलि एवं उपपाद समुद्घात करते समय इन तीनों लोकों में उनका गमन सनाड़ी के बाहर भी अविरुद्ध है, ऐसा जिनागम से सिद्ध है। लोक के मूलभाग में उसका प्रमाण पूर्व से पश्चिम में सात राजू कहा गया है और फिर मध्यलोक में एक राजू, ऊर्ध्व लोक में ऊपर जाकर पाँच राजू और पुन: एक राजू विभक्त है और दक्षिण उत्तर दिशा में लोक का आयाम सर्वत्र निरन्तर सात राजू जानना चाहिए। दस, सालह, बाईस, अट्ठाईस, चौंतीस, चालीस एवं छियालीस रज्जू अर्थात् 196 रज्जू प्रमाण सात नरक पृथिवियों का घनफल जानना चाहिए। इस प्रकार सातों नरकों का प्रमाण एक सौ छियानवे राजू है। एक सौ सैंतालीस राज ऊर्ध्वलोक का प्रमाण जानना चाहिए। इस प्रकार गणना करके ये 345 रज्जू कहे गये हैं। उपर्युक्त त्रैलोक्य का स्वरूप बताने के बाद घम्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिया, मघवा एवं माधवी नरकों का वर्णन करते हुए उन नारकियों की आयु, वेदना एवं मृत्यु के बाद होने वाली गत्तियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। नरक वर्णन के बाद भवनवासी देवों के भेद, शरीर, आयु और देवियों के प्रमाण, व्यन्तर देवों के भेद, भ्रमण स्थान एवं शरीर प्रमाण, ज्योतिष्क देवों का वर्णन, स्वर्ग कल्पों का वर्णन, सौधर्म तथा ईशान स्वर्ग के विमानों की संख्या, सनत्कुमारादि स्वर्गी की विमान संख्या एवं आयु प्रमाण तथा अन्य देवों की आयु का प्रमाण एवं उनके सुख, उनमें विशेषता भेद आदि का सविस्तार वर्णन किया गया है। मध्यलोक एक रजू प्रमाण विस्तार वाला द्वीप एवं सागरों से युक्त है, जो कि असंख्यात हैं। मध्य लोक के बीचों-बीच द्वीपों में प्रधान तथा उनके राजा के समान जम्बू द्वीप है। वह एक लाख योजन विशाल प्रमाण वाला है यद्यपि वह आकार में सबसे लघु है परन्तु गुणों में ज्येष्ठ है। मेरुपर्वत की दक्षिणी दिशा में भरत क्षेत्र है उसके मध्य में विजयार्द्धपर्वत है। उस पर्वत के शिखर पर नौ पूर्णभद्र नामक कूट हैं। गंगा, सिन्धु आदि नदियों से भरत क्षेत्र के छह खण्ड किये गये हैं। आर्यखण्ड में हिमवान-महाहिमवन्त नामक कुलाचल हैं। गंगा, सिंधु आदि नदियाँ पद्महद से निकली हैं और सभी समुद्र में गिरती हैं। हिमवान्
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy