________________
पर अपने को निर्दोष बताते हुए दीक्षा संस्कार करने की प्रार्थना की। अनन्तर तापसव्रत को प्राप्त कर वह पाखण्डी साधु बन गया और तप करता हुआ वन में रहने लगा। __ इधर कमठ के लघु भाई मरुभूति भ्रातृ-विद्रोह के कारण अत्यधिक शोकाभिभूत हुआ और एक दिन राजा से कहा कि आप आज्ञा करें तो मैं कमठ से क्षमायाचना कर लें क्योंकि उसे व्यर्थ ही दण्डित किया गया है। राजा के द्वारा रोके जाने पर भी मरुभूति क्षमा माँगने वन में पहुंचा और जन्न वह उसके चरणों में सिर रखकर क्षमा माँग रहा था तभी उस कमठ ने उसे सिर पर शिला के आघात से मार डाला।
आर्तभाव से मरकर मरुभूति सल्लकी वन में वज्रघोष नामक गजेन्द्र (हाथी) हुआ। वरुणा नाम की जो कमठ की पहल थीं, वह मरकर वहीं हथिनी हुई। वह उस हाथी के साथ भोग विलास में रत रहती थी। जब यह हाथी वन में मदोन्मत्त व रति सुख में मस्त हो रहा था, उसी समय पोदनपुर में राजा अरविन्द ने मनोहर जलवुक्त मेघों को देखकर सोचा कि- 'मैं इसी मपटल के समान आकार का पृथ्वी तल पर संसार दुख का नाश करने वाला एक जिनगृह (जिनमन्दिर) बनवाऊँगा।'' इस प्रकार सोच कर वह कल्पनालोक में विचरण कर रहा था तभी उसने पुनः आकाश को देखा तो वहाँ मेष पटल को नहीं पाया। शुद्ध आकाश को देखकर राजा ने विरागपूर्वक अपने मन में सोचा कि- "जिस प्रकार घने बादलों का आगमन क्षणभर में नष्ट हो गया, उसी प्रकार से संसार का स्वरूप ही वैसा कहा गया है।'' यह सोचकर वह अत्यधिक वैराग्यचित्त हो अपने पुत्र को राज्य समर्पित कर मुनि हो गया और उसी सल्लकी वन में कायोत्सर्ग में स्थित हो आत्म स्वरूप का ध्यान करने लगा। ___ राजा अरविन्द मुनि बन जब तपस्या कर रहे थे तभी उस वन में वणिक्श्नेष्ठ बड़े भारी सार्थ के साथ वहाँ सके। जब वे भोजन कर रहे थे तभी वह हाथी वन जीवों को कम्पायमान करता हुआ वहाँ आया। उस हाथी के भय से वे वणिक भी भागकर मनि की शरण में आ गये तब वह हाथी भी मुनि के पास आया। आतापन योग से स्थित उन मनिराज को क्रोध वश जब वह मारने लगा तभी पूर्व भव का स्मरण हो जाने के कारण वह पृथ्वी पर सिर झुकाकर खड़ा हो गया। उसी समय मुनिराज का योग समास हुआ और वे बहुज्ञानी मुनि उस गजश्रेष्ठ से बोले- हे मरुभुति ! मेरे द्वारा बार-बार रोके जाने पर भी तुम रुके नहीं। दुष्ट कमठ Puspashrescusesesesxesxesiseesexestesexesnes s