SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ kakak Resjeskas उक्त ( 1/5/10-11 ) पंक्तियों को इस प्रकार पढ़ा जाना चाहिए तंणिसुविवि गुरुणागुरुण ईसि हँसे वि मुणेवि मणि। 11 (ख) " रइधू" की अन्य रचना " मेहेसर चरिउ" में " रइधू" का अपरनाम "सिघियसेणव" मिलता है, जो सिंहसेन का ही रूप है। ग्रन्थ रचना के प्रारम्भ में कवि पूर्ववर्ती आचार्यों को स्मरण करता हुआ भट्टारक यशःकीर्ति को नमस्कार करता है। प्रत्युत्तर में यशः कीर्ति उसे आशीर्वाद देते हुए मन्त्राक्षर देते हैं - मेहेसर चरिउ, 1/3/9-10 " "मेहे सरचरिउ ' का अपरनाम आदिपुराण" भी है उक्त ग्रन्थ 'आदिपुराण" इस नाम से नजीबाबाद (उ. प्र.) के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है। उसमें लेखक के नाम पर सिंहसेन ही अंकित है, रइधू नहीं। किन्तु पिता का नाम - हरि सिंह दोनों में समान है। लेखक नाम एवं ग्रन्थशीर्षक की विभिन्नता को छोड़कर तथा ग्रन्थप्रशस्ति एवं पुष्पिका में यत्किंचित् हेर-फेर के अतिरिक्त पूरा का पूरा ग्रन्थ वही हैं जो कि रइधू कृत " मेहेसर चरिउ" है। फिर भी आश्चर्य है कि उसमें "सिंहसेन एवं " आदिपुराण" नाम ही उपलब्ध हैं "मेहेसरचरिउ "नहीं। +1 · जैन सिद्धान्त भवन आरा स्थित मेहेसरचरिउ" नामक प्रति में, जो कि रोहतक शास्त्र भण्डार में सुरक्षित त्रि. सं. 1606 की प्रति के अनुसार लिखी गई थी, उसमें ‘सिंघियसेणयं" के स्थान पर " रइधू पंडिय" पाठ मिलता है, यथाभो रहधूपंडिय सुसहाए - 1 44 भो सिंघियसेणय सुसहाएँ होसि वियक्खणु मज्ज्ञु पसाएँ । इय भवि तक्खरु दिण्णऊ तेणाराहिउ तं जि अछिण्णउ ॥ -.. 14 JE उक्त 'आदिपुराण" का प्रतिलिपि काल वि. सं. 1851 वैशाख कृष्ण 10. शुक्रवार, शतभिषा नक्षत्र है तथा उसकी प्रतिलिपि दादुर देश स्थित नजीबगढ़ पर्वत के निकट उत्तराखण्ड में वहाँ के पंचों की ओर से कराई गई थी। यह प्रति अत्यन्त भ्रष्ट एवं अप्रामाणिक है। इसमें उपलब्ध “सिंघियसेणय" पाठ भी नितान्त भ्रामक एवं अप्रामाणिक है | प्रतीत होता है कि किसी सिंहसेन नामक EC 11 रइधू ग्रन्थावली, भाग-1, भूमिका पृ.5, 575023545
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy