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________________ आचार्य ने स्वयं अथवा उनके किसी शिष्य ने उस (सिंहसेन) नाम को प्रसिद्ध करने के लिए मूल ग्रन्थ एवं ग्नन्थकार के नामों में जबर्दस्ती परिवर्तन किया है।12 भ्रम निवारण : __रइधू साहित्य के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि कवि का नाम रइधू ही था क्योंकि इतने विपुल साहित्य में एक दो स्थानों को छोड़कर कहीं भी भ्रमात्मक स्थिति नहीं है। यदि कवि का "सिंहसेन" अपर नाम होता तो वे कहीं न कहीं अपने काव्य में उसका उल्लेख अवश्य करते। श्रीमान् पं. जुगल किशोर जी मुख्तार सा. ने "सिंहसेन' को रइधू का बड़ा भाई माना है,13 लेकिन इसकी पुष्टि में कोई प्रमाण नहीं दिया है, जबकि रधू ने "पउमचरिउ14 में अपने भाईयों के जो नाम दिए हैं उनमें यह नाम कहीं भी नहीं है, अत: स्वत: ही इस मत का निराकरण हो जाता है। रइयू का परिवार : महाकवि रइधू ब्रुधजनों (विद्वानों) के कुल को आनन्द देने वाले साहू हरिसिंह के पुत्र एवं संघपति देवराज के पौत्र थे। 15 इनकी माता का नाम विजयश्नी था। 16 इन्हीं की पवित्र कोख से कविवर रइधू ने जन्म लिया था। इस प्रकार रइयू के स्वयं उल्लेख करने.से इस विषय में कोई विवाद नहीं है। रइधू के पिता के तीन पुत्र थे जिसमें रइधू अपने माता-पिता के तृतीय पुत्र थे। इन (रइधू) से बड़े दो भाई थे. जिनके नाम क्रमश: बाहोल एवं माहण सिंह थे। 17 महा कवि रइधू ने अपने विवाह की सूचना तो नहीं दी है किन्तु पत्नी एवं 12 रइधू ग्रन्यावली, भाग 1. भूमिका, पृ.5-6 13 जैन हितैषी (पत्रिका) 13/3 14 पउमचरिंउ 11/17/11. 12 15 र्णदत सिरिहरसिंधु संघाहिए। देवराज सुइपवरगुणाहिउ॥ जसु संताणि कईसु अमच्छरु। रइधू संजायउ गुणकोन्वर |- मेहसरचरित 13:1117-8 (सम्मइजिणचरिंठ 10/28:13, सुक्कोसलचरिउ 1/3:9. सम्मतगुणणिहाणणिकन्द 1:14/14, जसहरचरिउ 4/18/18, पासणाहचरिर 17, वित्तसार 7:141, सिरिवानचरिउ 10:25/19 आदि में भी कहीं पिता का और कहीं पिता तथा पितामह दोनों का नामोल्लेख मिलता है।) 16 सम्मत्तगणिहायकन्च 1:14:14 17 बाहोलमाहणसिंह बिक र्णदउ।
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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