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________________ काव्यों में रइधू की जगह "सिहंसेन" यह नाम भी मिला है। इस विषय में जैनधर्म के मर्मज्ञ विद्वान् श्रीमान् पं. नाथूराम जी प्रेमी ने "प्राकृतदसलक्षणजयमाला''4 में, पं. मोहनलाल दुलीचन्द देसाई ने "जैन साहित्यनोइतिहास' 5 में, श्री एच. डी. वेलणकर ने "जिनरत्रकोश' में और रइधू साहित्य के जीवन्त अध्येता डॉ. राजाराम जी ने "रइधू साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन 7 में महाकवि रइधू का अपरनाम "सिंहसेन" माना है। प्रथम तीन लेखकों ने जहाँ इस बात की पुष्टि में कुछ भी उल्लेख नहीं किया है, वहीं डॉ. राजाराम जी ने इस विषय में तीन संभावनात्मक तथ्य दिए हैं, जो इस प्रकार हैं : (क) रइधु एवं सिंहमेन इन कोनों में से दो दनका जन्मनाम अथवा धरुनाम हो सकता है तथा दूसर। साहित्यिक। जन्म नाम "रइधू" होने की अधिक संभावना है। प्रतीत होता है कि "रइधु के अधिकांश परिचित व्यक्ति 'रइधू' नाम से ही अधिक परिचित थे। अत: वही नाम अधिक प्रचलित हो गया। साहित्य क्षेत्र में प्रविष्ट होते ही रइधु ने स्वयं अथवा उसके किसी गुरु ने उनका "सिहंसेन" यह नाम प्रचलित करना चाहा होगा तथा उनके परम हितैषी एवं स्नेही गुरु यशः कीर्ति जैसे भट्टारक ने उन्हें "सिहंसेन" नाम से सम्बोधित भी किया हो, किन्तु कमल सिंह संघपति प्रभृति उनके मित्र उन्हें बालमित्र "रइधूपंडित" आदि कहकर भी पुकारते रहे। (ख) यह भी सम्भावना की जा सकती है कि महाकवि रइधु भट्टारकों को ज्ञानदान देते रहे हैं और इसी कारण भट्टारक यश कीर्ति ने उनके उपाध्यायत्व को सूचित करने के लिए उनका "सिंहसेन" नाम रच दिया हो। (ग) महाकवि रइधू प्रतिष्ठाचार्य भी थे, अत: यह भी असम्भव नहीं कि उनके गुरु यश: कीर्ति भट्टारक ने उनके पाण्डित्य एवं विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर तथा प्रतिष्ठाचार्य के अनुकूल श्रुतिमधुर नाम "सिंहसेन'' घोषित 4 "प्राकृत दसलक्षणजयमाला'' (बबई 1923) पृष्ठ 1 जैनसाहित्यनो इतिहास (बम्बई 1933) पृ.520 जिनरत्वकोश (पूना 1944) पृ. 29 7 रइधू साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन (वैशाली 1973) पृ. 35 से 39 तक ६ (क) तह पुणू कध्वरयणरयण्पायरु। बालमित्त अम्हहं हायरु ।। सम्मत. 1/14/8 (ख) भो रइधु बुह बहिव-पमोय ।। ससिद्ध जाय तुहू परम मित्तु। तर वयणामित्र पाणण तित्तु।। पुण्णासव. 16/89
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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