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जीवन-परिचय : __यदि प्राचीन तथा मध्यकालीन साहित्य पर दृष्टि डालें तो प्राय: यह पाया जाता है कि उसमें लेखकों ने अपना परिचय या तो बिल्कुल ही नहीं दिया है
और यदि दिया भी है तो वह भी अपूर्ण या क्रमशः न होने के कारण भ्रान्ति ही पैदा करता है। वैसे भी पुराकालीन लेखकों ने आत्म प्रशंसा से दूर हटकर अपने काव्य में वर्णित चरित्र का प्रतिपादन करना ही अपना ध्येय समझा और स्वयं से दूर रहकर उसी की पूर्णता में लगे रहे। कवियों के जीवन चरित के विषय में उनकी यही वृत्ति बाधक बनी है। प्रायः देखा जाता है कि ऐतिहासिक मनीषियों, व्यक्तित्वों के सम्बन्ध में सिक्कों, शिलालेखों, दानपत्रों , ऐतिहासिक गजटों आदि से उल्लेख मिल जाता है। राज्याश्रित कवियों का उल्लेख करके आश्रयदाता राजाओं के जीवन की घटनाओं से परिचय मिल जाता है, लेकिन आत्म प्रशंसा से मुख मोड़े रहने वाले भक्त कवियों के विषय में ऐसा कुछ भी नहीं हैं। 'महाकवि रइधू भी इससे अछूते नहीं रहे और जहाँ उन्होंने इतने विशाल साहित्य
का प्रणयन किया, अपने आश्रयदाताओं के विषय में पीढ़ी-दर-पीढ़ी का उल्लेख किया, वहीं अपने विषय में अधिकांश मौन ही रहे। फिर भी रचनाओं के अन्तक्ष्यि, बाह्यसक्ष्यि और अनुमानों के माध्यम व कवि द्वारा वर्णित अपने आश्रयदाताओं के जीवन परिचय के आधार पर यहाँ क्रमश: कवि के जीवनपरिचय व विषय पर प्रकाश डाला जा रहा है:कवि नाम:
अपभ्रंश साहित्याकाश के जाज्वल्यमान सूर्य महाकवि रइधू के नाम के विषय में भी विद्वानों में मतभेद पाया जाता है, क्योंकि सम्पूर्ण रइधू साहित्य में "रइधू" के साथ-साथ रइधूठा, रदू,2,रयधु ३, जैसे समानता को प्रकट करने वाले अन्य नाम भी मिलते हैं। इससे यह शंका होने लगती है कि कहीं कवि का "रइधू" यह नाम यथार्थ है, उपनाम है अन्य कोई प्रदत्त उपाधि? रइधू या सिंहसेन :
"रइधू द्वारा रचित कहा जाने वाला साहित्य कहीं सिंहसेन नाम के कवि द्वारा लिखा तो नहीं हैं. यह जानना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है, क्योंकि कुछ
1 सम्मइजिणचरिउ 1/19:11 2 वही 1/12/15, 2:16/15, 318/17, 5138/12,3/17/13, 7/14/19 इत्यादि। ३ पासणाहचरिंउ : रइधू 7:11 sesxesesTXSASTESTS 42 ASTRastaTRASTAsrustery