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PASSESTATESTAustusrestusesxxsiestaTATUSYESesxesyaxi कल्पसूत्र में वर्णित भगवान पार्श्वनाथ :
श्रुतकेपली भद्रबाहुरॉचत ''कल्पसूत्र ग्रन्थ में वैसे तो मुख्य रूप से भ. महावीर के जीवन चरित का ही वर्णन है, किन्तु भ. महावीर की पूर्व परम्परा में भ. पार्श्वनाथ का भी संक्षिप्त जीवन चरित्र इसमें वर्णित है। वर्णन इस प्रकार है -
भगवान पार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान एवं मोक्ष ये पाँचों कल्याणक विशाखा नक्षत्र में ही हुए थे, इसलिए वे पंच विशाखा वाले कहलाते थे। भ. पावं का जन्म चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन वाराणसी नगरी के राजा अश्वसेन की रानी वामादेवी के गर्भ से हुआ था। यह जीव प्राणत कल्प से चयकर आया था। भ. पार्श्व जन्म से ही तीन ज्ञान के धारी थे, वे माता के गर्भ में नौ माह. साढ़े सात रात दिन रहे थे। तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहने के बाद पौष कृष्ण एकादशी के दिन विशाला नामक शिविका में बैठकर देत्रों. मनुष्यों एवं असुरों के साथ जाकर उन्होंने आश्रमपदनामक उद्यान की ओर अशोक वृक्ष के नीचे पंचमुष्ठि केशलोंच किया और एक देवदूष्य वस्त्र को लेकर तीन सौ पुरुषों के साथ अनगार अवस्था को प्राप्त किया। उन्होंने तप काल के 83 दिनों तक विभिन्न उपसर्गों को सहन करते हए 84 वें दिन चैत्र कृष्णा चतुर्थी को पूर्वाह्न में आंवले (धातकी) के वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान को प्राप्त किया।
भ. पार्श्वनाथ के आठ गणधर थे - 1. शुभ, 2. अजधाप (आर्थधोष). 3. बसिष्ठ, 4. ब्रह्मचारी, 5, सोम, 6. श्रीधर, 7. वीरभद्र तथा 8. यश। आयंदा आदि सोलह हजार श्रमण साधु थे, पुप्पचूला आदि 38 हजार आर्यिकायें र्थी, सुनन्द आदि एक लाख चौंसठ हजार श्रमणोपासक थे, सुनन्दा आदि तीन लाख सत्ताईस हजार श्रमणोपासिकायें थीं। 14 पूर्वधारी, चौदह सौ अवधिज्ञानी एक हजार केवलज्ञानी, ग्यारह सौ वैक्रियक लब्धि वाले, छह प्लौ ऋजुमति ज्ञान वाले थे। भ. पास्त्रं के संघस्थ एक हजार श्रमण और दो हजार आर्यिकायें सिद्ध हुई। साढ़े सात सौ विपुल मतियों को, छह सौ वादियों की, बारह सौ अनुत्तर विमान में जाने वालों की संख्या भगवान पार्श्व के संघ में थी। __ भ. पार्श्वनाथ के समय में चतुर्थ युगपुरुष तक युगान्तकृतभूमि थी अर्थात् चतुर्थ पुरुष तक मुक्ति मार्ग चला था। उनको केवलज्ञान हुए तीन वर्ष व्यतीत LSTAYestestisastest arkestastesesxeSTESTASTARAT