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होने पर किसी साधक ने मुक्ति प्रास की, यह उनके समय की पर्यायान्तकृत भूमि थी।
भ, पार्श्वनाथ तीस वर्ष गृहवास करके 83 रात्रि-दिन छद्मस्थ पर्याय में रह करके कुछ कम सत्तर वर्ष तक केवलीपर्याय में रहकर कल सौ वर्ष अपनी आयु पूर्णकर दुषम-सषम नामक अवसर्पिणी काल के बहत बीत जाने पर श्रावण शुक्ला अष्टमी के दिन सम्मेद शिखर पर्वत से, अपने सहित चौंतीस (34) पुरुषों के साथ मासिक भक्त का अनशन कर पूर्वाह्न के समय ध्यानमुद्रा में मुक्ति को प्राप्त हुए। कल्पसूत्र और पासणाहचरिठ में असमानता :
श्रुतकेचली भद्रबाह रचित "कल्पसूत्र'' और महाकवि रइध द्वारा रचित "पासणाहचरिउ'' में यद्यपि अधिकांश समानतायें भ. पार्श्वनाथ के सन्दर्भ में मिलती हैं, किन्तु कुछ असमानतायें भी हैं, जो इस प्रकार हैं .
'कल्पसूत्र' के अनुसार पार्श्व का जीव प्राणत कल्प से माता वामा देवी के गर्भ में अवतरित हुआ था,188 जबकि 'पासणाहचरिठ' के अनुसार वह वैजय । स्वर्ग से अवतरित हुए थे।189 इसी में आगे इस जीव का चौदहवें स्वर्ग में देव होने का भी उल्लेख है।190 "तत्वार्थ सूत्र के अनुसार चौदहवां स्वर्ग प्राणत ही है।191
"कल्पसूत्र'' के अनुसार घ. पार्श्व का जन्म पौषमास के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन सन्धिबेला अर्थात् जब रात्रि का पूर्वभाग समाप्त और पिछला भाग प्रारम्भ होने जा रहा था, हुआ।192 जबकि 'पासणाहचरिउ' के अनुसार . भ. पाश्चं का जन्म पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के दिन हुआ।193 ( यहाँ ऐसा प्रतीत होता है कि जन्म तिथि की भ्रान्ति इस कारण हुई हो क्योंकि जहाँ कल्पसूत्रकार ने जन्म के समय रात्रि का पिछला भाग प्रारम्भ होने जा रहा था. ऐसा मानकर दशमी को स्वीकार किया, वहीं रइधू ने रात्रि के पिछले भाग में ही जन्म होना मानते हुए एकादशी को जन्म तिथि माना हो)
188 कल्पसूत्र 149 189 यू : पासणाहचरिंड 2:53 190 बही, पत्ता 125 191 तत्वार्थसूत्र 4/19 192 कल्पसूत्र 151 193 रइभ्रू, पासाणाहधरिंठ 2.5-11
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