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________________ (spores) आचाराङ्ग सूत्र 181 के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्म का पालन करते थे। यहाँ पर " याम" शब्द महाव्रत के अर्थ में प्रयोग किया गया है। बाद में हम पाते हैं कि " योगदर्शन" में यह शब्द आठ व्रतों की गणना में प्रथम स्थान रखता है। इस प्रकार " यम" शब्द जैन साहित्य से योग दर्शन में प्रविष्ट हुआ है। "याम " शब्द संस्कृत भाषा की यम् धातु से बना है, जिसका अर्थ नियंत्रण या रोक है। अतः हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह पर नियन्त्रण या शेक ही चातुर्याम धर्म माना गया। डॉ. जेकोबी का मत है कि पालि चातुर्याम प्राकृत चाउज्जाम ही है तथा बौद्ध परम्परा में यह पार्श्वनाथ की परम्परा से आया। बाद में महावीर ने अपने अनुयायियों के अनैतिक कार्यों के कारण को और जोड़ा आचारांग 182 से भी हमें भ. महावीर के केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद पंचमहाव्रतों के देने की भी पुष्टि होती है। वृहदूकल्पभाष्य में कहा गया है कि बौद्ध भिक्षुओं ने साध्वियों का अपहरण किया। इस प्रकार के व्यवहारों से हो सकता है पाँचवाँ व्रत ब्रह्मचर्य जोड़ने की आवश्यकता पड़ी हो। केशी तथा गौतम के संवाद के मध्य गौतम ने यह कहा कि प्रथम तीर्थंकर के अनुयायी ऋजु तथा जड़ थे, किन्तु महावीर के अनुयायी वक्र जड़ थे। इसी कारण व्रतों की संख्या में भिन्नता है : पुरिमा उज्जुजडा उ वक्रजडा य पच्छिमा । मज्झिमा उज्जुना तेण धम्मे दुहा कए ||183 केशी तथा गौतम का यह संवाद स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है कि सिद्धान्तों के विषय में पूरी तरह से विचार-विमर्श होने के बाद पार्श्वनाथ के अनुयायी केशी ने महावीर के 5 व्रतों को अपनाया। इस प्रकार पार्श्वनाथ की परम्परा के शिष्य महावीर के शिष्यों के साथ मिले। यह कथन इस प्रकार हुआ है. - 181 आचारसंग सूत्र 11/16 182 वही 2 15, 10 24 183 उत्तराध्ययन सूत्र 23/26 454545454 35 ४)
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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