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________________ और बाद में नातपुत्त के धर्म में परिवर्तित हो गए थे। अब तक ये बौद्ध नहीं बने थे।179 दोधनख संजय का भान्जा था। अत: यह प्रतीत होता है कि वह जैन धर्मानुयायी था। इस अनुमान की पुष्टि हो सकती है, यदि यह सिद्ध हो जाय कि उसकी मज्झिम निकाय के उपालिसुत्त के “दोघतपस्सी" से एकरूपता हो जाय, जो कि निगण्ठ नात पुत्त का अनुयायी था। उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित भगवान पार्श्वनाथ : ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में दार्शनिक, नैतिक, धार्मिक, , सामाजिक आदि सिद्धान्तों के प्रतिपादन पर विचार-विमर्श करने हेतु वादविवाद आयोजित होते थे। वाद-विवादों की सम्पन्नता हेतु भिक्षु (साधु) अपने शिष्यों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक भ्रमण करते थे। "उत्तराध्ययन सूत्र' के 23वें अध्ययन (अध्याय) से इस कथन की पुष्टि होती है। उत्तराध्ययन सूत्र के 23 अध्ययन में भ. पार्श्वनाथ के शिष्य केशी और भ. महावीर के शिष्य गौतम के संवाद का वर्णन किया गया है। इसी ग्रन्थ के अनुसार केशी और गौतम श्रावस्ती नगर के तिन्दुक नामक उद्यान में मिले। जिज्ञासावश श्रावक तथा दूसरे अन्य लोग दोनों के संवाद को सुनने हेतु एकत्रित हुए। संवाद का अभिप्राय ५. पार्श्व और भ. महावीर इन दोनों परम्पराओं के अनुयायियों को धर्म के मूल सिद्धान्तों के विषय में प्रतिबुद्ध करना था। पार्श्वनाथ चातुयांम धर्म के प्रचारक माने गये हैं। ये चार धर्म हैंअहिंसा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह। इन चार व्रतों में भ. महावीर ने एक पाँचवाँ ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया। यह उत्तराध्ययन सूत्र के निम्नलिखित सूत्र से स्पष्ट है - चाउज्जामो य जो धम्मों, जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ बद्धमाणेण, पासेण य महामुणी ।।180 अर्थात् जो चातुर्याम धर्म है, उसका प्रतिपादन महामुनि पार्श्व ने किया है । और यह जो पंच शिक्षात्मक धर्म है, उसका प्रतिपादन महामुनि वर्धमान ने किया है। 179 मज्झिम निकाय टीका 180 उत्तराध्ययन सूत्र 23/12
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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