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________________ किरीट के आगे जाकर चिता प्रज्वलित कर दी, जिससे आकाश का मार्ग अवरुद्ध हो गया और संसार ने जिनवर (पार्श्व) के मोक्षगमन को जान लिया।124 सम्पूर्ण भुवन को क्षुब्ध करने वाले अनेकतूर्यों के निनादपूर्वक वह इन्द्र उन (पार्श्व) के प्रशंसाकारक भस्म को ग्रहण करके अपने सिर पर रखकर क्षीरसागर (समद्र) को गया।125 यहाँ समाको बहकर इन्द्र स यचा और श्री गणधर को प्रणाम करके अपनी भक्ति के अनुसार अन्तिम श्रेष्ठ कल्याणक (मोक्ष) करके स्वर्ग को चला गया।126 तीर्थर पार्श्व का तीर्थकाल : पूर्ववर्ती तीर्थकर से लेकर उत्तरवर्ती तीर्थकर के जन्म तक का समय पूर्व तीर्थङ्कर का तीर्थ कहा जाता है। तीर्थ से तात्पर्य इस बात से है जिसमें एक तीर्थङ्कर के उपदेश का उसी रूप में पालन किया जाता रहा हो। पार्श्वनाथ स्वामी का वह तीर्थ काल दो सौ अठहत्तर वर्ष प्रमाण है।127 तीर्थङ्कर पार्श्व का समय : जैन शास्त्रों की मान्यतानुसार तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ के 250 वर्ष बीत जाने पर भगवान महावीर का जन्म हुआ था। 28 वीर निर्वाण सम्वत् और ईस्वी सन् में 527 वर्ष का अन्तर है। जैन शास्त्रानुसार अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीर की सम्पूर्ण आयु कुछ कम 72 वर्ष की थी।129 अत: 527 . 72 = 599 वर्ष ई. पू. में महावीर का जन्म सिद्ध होता है और यह निर्विवाद भी है। भ. महावीर के जन्म के 250 वर्ष पूर्व अर्थात् 599 + 250 = 849 ई. पू. पार्श्वनाथ का निर्वाण समय है। . भगवान पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता : जैन परम्परा कालचक्र को स्वीकार करती है तथा जैन सिद्धान्तों की नित्यता को भी। इन सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार अपने समय में तीर्थक्षरों ने 124 रइधू : पास.7/4/5.12 125 वही, पत्ता - 131 126 वही 7/5/1-2 127 तिलोयपण्णत्ती 471274 128 पाश्वेशतीर्थसन्ताने पञ्चाशतादिदशराब्दके ।। तदभ्यन्तरवायुमंहावीरोऽव जातवान् | - उत्तर पुरा 741279 129 द्वासप्ततिसमाः किनिनास्तस्वायुषः स्थितिः । उत्तरपुराण 747280 Businestuskusume 21STASTESTERSXSRestastess
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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