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शिखर" नाम से विख्यात पर्वत भारतवर्ष के बिहार राज्य के गिरिडीह जिले में स्थित है तथा आज भी जैन धर्मानुयायियों का प्रमुख नीर्थ एवं वन्दनास्थल है। जैनतेर समाज में वह 'पार्श्वनाथगिरि" के नाम से भी प्रसिद्ध है। पार्श्व की निर्वाणतिथि :
श्री रइधू ने भगवान् पार्श्वनाथ की निर्वाणतिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी मानी है120 'कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ को विशाखा नक्षत्र में श्रावण शुक्टा अ.मी को पूर्णदों पो पानि हुई।121 'तिलोयपण्णत्ती' के अनुसार वह समय श्रावण शुक्ला ससमी का प्रदोषकाल है।122
निर्वाणतिथि के विषय में दिगम्बर लेखक 'तिलोयपण्णत्ती' का और श्वेताम्बर लेखक कल्पसूत्र का अनुसरण करते आ रहे हैं। भ, पार्श्वनाथ की आयु :
भ. पाश्वनाथ की आयु के सम्बन्ध में सभी ग्रन्थकार एक मत हैं। सभी के अनुसार उन्होंने सौ वर्ष की आयु प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। भ. पार्श्व के साथ मोक्ष गए मुनियों की संख्या :
भ. पार्श्वनाथ के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए मुनियों की संख्या 36 (छत्तीस) है।123 तीर्थङ्कर पार्श्व के निर्वाणोपरान्त देवों द्वारा की गई क्रियायें : ___ तीर्थंकर पार्श्व का निर्वाण जानकर इन्द्र सुरवृन्द सहित वहाँ आया। उस धीर ने विक्रिया ऋद्धि से मायामय धीर शरीर बनाया और उसे सिंहासन पर विराजमान किया। पुनः अष्ट प्रकार से पूजा की, जो सभी के हृदयों को अतिमनोज्ञ लगी! गोशीर्ष प्रमुख देवदारु, श्रीखण्ड और नाना प्रकार के काष्ठ मिलाकर उससे शैय्या (चिता) निर्मित की और उस पर पार्श्व का मायामय शरीर रखा। जब देवगण उसकी तीन प्रदक्षिणायें देकर प्रणाम करके समीप में खड़े थे तभी अग्निकुमारों ने (पार्श्व के) चरणों में प्रणाम करके उनके शीर्ष
120 रइधू : पासणाहचरित; 713 121 कल्पसूत्र 122 तिलीयपण्णती 2:1218 123 रइधू : पास. 7/4 PresxesaxesiseSTATES 20 usdesesxesxsesxesxsxs