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________________ साथ अश्वत्थ वन में दीक्षा को ग्रहण किया।4 गुणभद्र ने दीक्षा का विस्तृत वर्णन करते हुए लिखा है कि मतिज्ञानावरण कर्म के बढ़ते हुए क्षयोपशम के वैभव से उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हो गया और लौकान्तिक देवों के आकर उन्हें (पाच को) सम्बोधित किया। उसो समय इन्द्र आदि देवों ने आकर प्रसिद्ध दीक्षा कल्याणक का अभिषेक आदि महोत्सव मनाया, तदनन्तर भगवान विश्वास करने योग्य युक्तियुक्त वचनों के द्वारा भाई-बन्धुओं को विदाकर विमला नाम की पालकी पर सवार होकर अश्ववन में पहुँचे। वहाँ अतिशय धीर वीर भगवान तेला का नियम लेकर एक घड़ी शिलातल पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके पर्यङ्कासन से विराजमान हुए। इस प्रकार पौष कृष्ण एकादशी के दिन प्रात:काल के समय उन्होंने सिद्ध भगवान को नमस्कार कर तीन सौ राजाओं के साथ दीक्षा रूपी लक्ष्मी स्वीकृत कर ली। भगवान ने पंचमुष्टियों के द्वारा उखाड़कर जो केश फैंक दिए थे, इन्द्र ने उनकी पूजा की तथा बड़े आदर से ले जाकर क्षीरसमुद्र में उन्हें डाल दिया65 श्री रइधू ने पार्श्व के दीक्षा की तिथि पौष मास की दशमी बतायी हैं।66 'कल्पसूत्र' के अनुसार पार्थ ने 30 वर्ष की आयु पूरी होने पर पौष कृष्ण एकादशी को आश्रम पद नामक उद्यान में दीक्षा ग्रहण की थी।57 समवायांग68 तथा कल्पसूत्र में पार्श्व जिस शिविका (पालकी) में बैठकर नगर से बाहर आए थे उसका नाम विशाखा बताया गया है। पुष्पदन्त के अनुसार दीक्षा बन का नाम अश्वत्थवन था|70 'पद्मपुराण के अनुसार भगवान ने जिस वृक्ष के नीचे दीक्षा ली, वह धव (घो) का वृक्ष था।1 64 तिलोयपण्णत्ती 41666 65 उतरपुराण पवं 73/124 से 131 ६ हिमफ्डलपयासहि पूसहिं मासहि दहमिहिं गुण-गण सेणि-धरु । . पिरि पासकुमार विणिहियमारें धारिंड तें णिक्खमण-भरु | - पासणाहचरित / घत्ता 53 67 कल्पसूत्र 157 68 समवायांग 250 69 कल्पसूत्र 157 70 महापुराण 94/22/10 71 पामुराणे विंशतितमं पर्व (59) पृ. 427
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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