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दीक्षा तिथि के सम्बन्ध में रइधू का अन्य पुराणों से मतभेद मिलता है लेकिन रइधू के पूर्व मन्तिः सभी ग्रन्थ पौष कृपया एकादशी ही गगनते हैं अत: यही समीचीन प्रतीत होती है। इतिहासकारों ने भी पौषकृष्णा एकादशी के प्रातः का समय दीक्षा तिथि, पालकी का नाम विमला, अश्व वन और साथ में दीक्षा लेने वाले राजाओं की संख्या 300 बतायी है।72 इसे ही निष्कर्ष मानना चाहिए। दीक्षा के समय पार्श्व की अवस्था :
भ. पार्श्वनाथ की दीक्षा के समय अवस्था 30 वर्ष थी, ऐसा दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं को मान्य है। पार्श्व प्रभु का प्रथम आहार :
उत्तरपुराण के अनुसार भ. पार्श्वनाथ पारणा के दिन आहार ग्रहण करने के लिए गुल्मखेट नामक नगर में गये, वहाँ श्यामवर्ण वाले धन्य नामक राजा ने अष्ट मंगल द्रव्यों के द्वारा पड़गाहकर उन्हें शद्ध आहार दिया। 3 रइधू ने लिखा है कि भगवान पार्श्व आठ उपवासोपरान्त (दीक्षा के बाद) चया (आहार) हेतु निकले और हस्तिनापुर (हथिणापुर) में वणिक श्रेष्ठ बरदत्त द्वारा प्रदत्त आहार ग्रहण किया तभी पंचाश्चर्य हुए।74 कविवर भूधरदास75 एवं श्री बलभद्र जैन78 ने, जहाँ प्रथम आहार हुआ उसका नाम गुल्मखेट ही बताया है किन्तु भूधरदास जी ने आहारदान देने वाले राजा का नाम ब्रह्मदत्त बताया है।77 वैसे अनेक ग्रन्थकार उत्तरपुराण के वर्णन को ही मान्यता देते
पंचाश्चर्य : ___तीर्थङ्कर के आहार ग्रहण करते ही पंचाश्चर्य होते हैं जो तिलोयपण्णत्ती79 में निम्न प्रकार वर्णित हैं :
72 विशेष के लिए देखें ''जैन धर्म का प्राचोन इतिहास" प्रथम भाग. ले. बलभद्र जैन.पू.
353 73 उत्तरपुराण पर्व 73/132 133 74 रइधू : पासणाहचरित 4/3 75 "गुल्मखेटपुर पहुँचे नाह" - भूधरदास कृत पार्श्वपुराण 8/3 76 जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग - 1, पृ. 353 77 पार्श्वपुराण - भूधरदास 84 73 रहधू : पासणाहचरिट 4/3 79 तिलोयपणमत्ती - गाथा 672 -674 SeasureshasesresherotusesxesKSRUSester