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कारण बताया है।56 त्रिषष्ठि शलाकापुरुषचरित57 तथा पद्मकीर्ति के पासणाहचरिउ58 से रइधू द्वारा बताए कारण को पुष्टि होती है। 'उत्तरपुराण' में उक्त घटना का वर्णन अवश्य किया गया है पर उसे पाश्चं को वैराग्यभावना का कारण नहीं माना है। 'उत्तरपुराण' के अनुसार तो यह घटना उस समय घटित हुई जला पार्श्व की आय केवल सोलह वर्ष की थी।59 वादिराज ने भी कमठ के साथ हुई घटना का उल्लेख ता किया है किन्तु 'इसे वैराग्योत्पत्ति में कारण न मानते हुए स्वभावत: ही उन्हें संसार से विरक्त होना दिखाया है।60 ___ वैराग्य के सन्दर्भ में एक और घटना देवभद्रसूरि ने सिरिंपासणाहचरियं में दी है, जिसके अनुसार पार्श्व ने बसन्त समय में उद्यान में जाकर भ. नेमिनाथ के भित्ति चित्रों का अवलोकन किया, जिन्हें देखकर पार्श्व को वैराग्य हो गया 1 ___इस उल्लेख के सन्दर्भ में मेरा अनुमान है कि पार्श्व के मन में इस घटना के पूर्व ही वैराग्य के अंकुर फूट चुके होंगे, क्योंकि बसन्त के समय में, जबकि समस्त जन कामोत्सव आदि मना रहे होते हैं ऐसे समय में भ. नेमिनाथ के भित्ति चित्रों का अवलोकन उनके सांसारिक जंजाल से विरक्त होने की पुष्टि करता है। अत: यह ज्यादा सम्भव है कि कम के साथ हुई वार्ता और नाग-नागिनी की मृत्यु ही सर्वप्रथम वैराग्य का कारण बनी हो
और बाद में हुई घटनाओं से उनकी वैराग्यभावना अपने शीर्ष स्तर पर पहुँची हो अत: कमठ और नाग-नागिनी की घटना ही वैराग्य भावना का प्रबल कारण माना जाना चाहिए। भ, पार्श्वनाथ द्वारा दीक्षा ग्रहण :
तिलोयपण्णत्ती के अनुसार भ. पार्श्वनाथ ने काशी62 (वाराणसी) में माघ शुक्ला एकादशी को पूर्वाह्न काल में विशाखा नक्षत्र के रहते षष्ठ भक्त63 के
56 पासणाहचरित 13 57 विषष्ठिशलाकापुरुषचरित 912:215 से 232 58 पद्मकोति : पासणाहचरिउ 59 उत्तरपुराण 73.95 60 पादिराज कृत पार्श्वनाथचरितम् 61 सिरिपासनाहचरियं (देवभद्रसूपि) 162 62 तिलोयपण्णत्ती 4:643 63 छठी भोजन बेला में पारणा करने को श्रष्ठ भक्त कहते हैं।