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________________ श्रृंखला प्राप्त हुई, उनका भली-भांति अध्ययन कर कवि ने कथावस्तु को सुन्दर ढंग से ग्रथित किया। धू का पासवरित पाक अप अंश मामः: पर अधिकार तथा काव्य कौशल का सुन्दरप्रमाण है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में तप के द्वारा समस्त आयु को सुखा देने वाले भट्टारक सहस्त्रकीर्ति, उनके पट्टघर श्री गुणकीर्ति नामधारी भट्टारक के पट्ट में होने वाले यश: कीर्ति तथा उनके अन्यतम शिष्य खेमचन्द्र को प्रणाम किया है। ग्रन्थ लिखने की प्रेरणा देने वाले अपने आश्रयदाता साहू खेमसिंह अथवा खेऊ साहू अग्रवाल का भी उन्होंने परिचय दिया है। इससे उनका कृतज्ञता गुण प्रकट होता है। तोमरवंश की गोपाचल शाखा के 9 राजाओं में से चतुर्थ राजा डूंगरसिंह का भी उन्होंने स्मरण किया है। कवि की रचना का उद्देश्य यह दर्शाना है कि आध्यात्मिक शक्ति के सामने संसार की सारी भौतिक शक्तियाँ तुच्छ हैं, वे उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती हैं। आकाश में अपने विमान को रुका हुआ देखकर संवरदेव के मन में आश्चर्य उत्पन्न हुआ (और बोला)-"वन में सोते हुए सिंह को किसने अगा दिया है? किसने आकाश में जाते हुए सूर्य को क्षुब्ध किया है, किस बलवान ने अलंध्य जलनिधि को लाँघा है?' इस प्रकार मन में सोचकर ज्यों ही देखा तो उसने जिनेश्वर पार्श्वनाथ को पाया। उनको देखकर वह दुष्ट (संवरदेव) कुद्ध हुआ और उसने तत्क्षण ही अपने अवधिज्ञान से उन्हें पहचान लिया और अपने आप बोला-"तुम कमठ नाम के जो ब्राह्मण थे, उसे इसी दुष्ट मरुभूति ने घर से निकाल दिया था। यही वह महादोषी है। मैं इसे ध्यानावस्था में ही यमराज के घर भेज देता हूँ.2 ऐसा सोचकर उसने उपद्रव प्रारम्भ किया। आकाश में प्रचण्ड वन तड़तड़ाने, गरजने, घड़घड़ाने और दर्पपूर्वक चलने लगा। तड़क घड़क करते हुए उसने सभी पर्वत समूहों को खण्ड-खण्ड कर डाला। हाथियों की मुर्राहट से मदोन्मत्त साँड चीत्कार कर भागने लगे। आकाश भ्रमर, काजल, ताल और तमाल वर्ण के मेधों से उसी प्रकार आच्छादित हो गया, जिस प्रकार कुपुत्र अपने अपयश से। मृगकुल भय से त्रस्तहोकर भाग पड़े और दुःखी हो गए। जल धाराओं पक्षियों के पंख छिन्न-भिन्न हो गए। नदी, सरोवर, गुफायें, पृथ्वीमण्डल एवं वनप्रान्त सभी जल से प्रपूरित हो गए। वहाँ 2 पासणाहचरिउ 47
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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