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अष्टम परिच्छेद उपसंहार
पार्श्वनाथ चरित विषयक रचनाओं में रइधूकृत 'पासणाहचरिउ' का स्थान __ भारतीय जीवन, साहित्य एवम् कला में भगवान पार्श्वनाथ का व्यक्तित्व सूत्र में मणि के समान पिरोया हुआ है। आधुनिक पाश्चात्य विद्वान् जैसे-कोलबुक, स्टीवेंसन, एडवर्ड टामस, शाण्टियर, गेरिनो, पुसिन, याकोबी एवं ब्लूमफील्ड तथा भारतीय जैसे - डॉ. भण्डारकर, डॉ. बेल्वेल्कर, डॉ. दास गुप्ता, डी.डी. कौशाम्बी एवं डॉ. राधाकृष्णन प्रभृति विद्वानों ने उन्हें सप्रमाण ऐतिहासिक महापरुष सिद्ध किया है। उनके महनीय व्यक्तित्व को आधार बनाकर प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश के अनेक कवियों ने लेखनी चलायी हैं, तदनुसार अभी तक 20 रचनायें ज्ञात हो सकी हैं, जो स्वतन्त्र रूप से भगवान पार्श्वनाथ पर ही मिलती हैं। ये रचनायें हैं-जिनसेन (8वीं शताब्दी) कृत पार्श्वभ्युदय, वादिराजसृरि कत पार्श्वनाथचरित ( 1025 ई.), पदमकीर्ति कृत पासणाहचरित (शक सं. 999), देवदत्त (10 वीं शताब्दी ई. का अन्तिम भाग) कृत पासणाहचरिङ, देवप्रभसूरि कृत पासणाहचरिय (1111 ई.) देवचन्द्र कृत पासणाहचरिङ ( 1463 ई.), माणिक्यचन्द्रसूरि कृत पार्श्वनाथचरित (1219 ई.), विनयचन्द्र सूरि (1229-1288 ई.) कृत पार्श्वनाथचरित, सर्वानन्द सूरि कृत पार्श्वनाथ चरित (1234 ई.), भावदेवसूरि कृत पार्श्वनाथ चरित ( 1355 ई.), सकलकीति कृत पार्श्वनाथपुराण (पन्द्रहवीं शताब्दी का प्रारम्भ), रइधू (1400-1479) कृत पासणाहचरिउ, असवाल कवि कृत पासणाहचरिठ (1422 ई.) तेजपाल कृत पासपुराण (15 वीं सदी ई.) पदमसुन्दरमणि कृत पार्श्वनाथचरित (1558 ई.), हेमविजयगणिकत पार्श्वनाथ चरित (1575 ई.), वादिचन्द्र कृत पार्श्वपुराण ( 1583 ई.), उदयवीरगणिकृत पार्श्वनाथ चरित (1597 ई.) तथा चद्रकीर्ति कृत पार्श्वपुराण ( 1597 ई.) इनमें रइधूकृत पासणाहचरिउ का विशिष्ट स्थान है। इसका कारण यह है कि रइधू को अपने पूर्ववर्ती पार्श्वनाथचरितों की एक लम्बी
। रइध्रु ग्रन्थावलो-भाग 1 (भूमिका पृ. 23) Resiastesesxesdesisxesies 235 kesesexsSASXESIAS