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________________ టోటోట్ 23. श्री पार्श्वनाथ जी तथा 24. श्री महावीर जी । इस समय अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान् महावीर का ही शासन चल रहा है। 23 वें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ : जैनधर्म के तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ थे। वे अपने अनुपम 15 बाहुबल से रिपुवर्ग को सिद्ध (नष्ट) करने वाले माण्डलिक राजा हुए जैन तीर्थङ्करों में भगवान पार्श्वनाथ का चरित सर्वसाधारण में लोकप्रिय रहा होगा, यही कारण है कि संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी के जैनकवियों ने भगवान पार्श्वनाथ विषयक अनेक रचनायें लिखीं। भ. पार्श्वनाथ विषयक अनेक चरित काव्यों, समस्त सम्प्रदायों की विभिन्न मान्यताओं, ऐतिहासिक प्रमाणों आदि का अध्ययन करने पर उनके जीवन का जो विवरण प्रकाश में आता है, वह इस प्रकार है : भगवान पार्श्वनाथ का गर्भावतरण : जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में काशी देश में वाराणसी नगरी स्थित हैं वहाँ अश्वसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम वामा देवी था। एक दिन रानी वामा देवी ने वैशाख कृष्ण द्वितीया के दिन विशाखा नक्षत्र में रात्रि के पिछले प्रहर में सोलह स्वप्न देखे, जिनका फल जानकर अश्वसेन ने बताया कि तुम्हारी कुक्षि से भावी तीर्थङ्कर जन्म लेगा। यह स्वप्नफल जानकर रानी अत्यन्त प्रसन्न हुई और सुखों का उपभोग करने लगीं। इधर भव भ्रमण का विनाश करने वाली सोलह भावनायें भाकर, तीर्थङ्कर गोत्र को बाँधकर एवं वैजयन्त स्वर्ग में जो तेजोराशि वाला देव हुआ था, वही बत्तीस सागर 4 अ. ऋषभोऽजितनाथश्च संभवञ्चाभिनन्दनः । सुपति: पद्मभासश्च सुपार्श्वः शशभृत्प्रभः || सुबुद्धिः शीतलः श्रेयान् वासुपूज्योऽमलप्रभुः । अनन्तो धर्म शान्ती च कुन्युदेवो महानरः ॥ मह्निः सुव्रतनाथ नमिनेमिश्च तीर्थकृत् । पार्श्वोऽयं पश्चिमो वीरो शासनं यस्य वर्तते ॥ - पद्मपुराणे विंशतितमं पर्व / श्लोक 9 से 10, पृ. 424 . द्र तिलोयपण्णत्ती यतितृषभाचार्य 1/ 512-513 पृ. 206 S तिलीयपण्णत्ती, हिन्दी टीका 4/606 6 वर्तमान में वाराणसी भारतवर्ष के उत्तरप्रदेश का एक प्रमुख जिला है जिसमें काशी भी सम्मिलित है। 52025 2
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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