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________________ को आवास कहा जाता है, नीचे वालों को भवन के नाम से जाना जाता है और मध्य प्रदेश में जो निलय है, उन्हें पुर कहा गया है, सभी अवधिज्ञान से प्रकाशित होते हैं। कोई तो गिरि कन्दराओं अथवा विवरों में निवास करती है और कोई सुरगिरि के शिखरों पर धवलगृहों (महलों) में, कोई आकाश में विचरण करते हैं तो कोई नन्दन वन में विहार करते हैं और कोई तरु शिखरों पर निवास करते हैं। व्यन्तरों के गृह सरकण्डों के वन में होते हैं।310 सभी व्यन्तर देवों के शरीर का प्रमाण दस धनुष कहा गया है। उनकी आयु (उत्कृष्ट) एक पल्य से कुछ अधिक होती है311 तथा जघन्य आयु दस सहस्र वर्ष हैं312 ज्योतिष्क देव : ज्योतिषी देव (ज्योतिष्क देव) पाँच प्रकार के हैं-सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे313 ये सब पाँचों प्रकार के देव ज्योतिर्मय हैं, इसलिए इनकी "ज्योतिषी'' यह सामान्य संज्ञा सार्थक है।314 ___ ज्योतिष्क देव आकाश में पृथ्वी से सात सौ नब्बे (790) योजन ऊँचाई छोड़कर है, उनके सम्बन्ध में कहा गया है कि वे जिन भगवान के निष्क्रमणकाल में देवताओं के मेरु पर्वत पर जाते समय अपने क्रम से जाते हैं। आयु एवं शरीर प्रमाण : चन्द्रमाओं की आयु एक लाख अधिक पल्य प्रमाण जानना चाहिए। सूर्यो की आयु एक हजार अधिक एक पल्य प्रमाण है, तथा शुक्रों की आयु सौ अधिक एक पल्य है। पुनः बृहस्पतियों की आय पल्य प्रमाण हैं। शेष बुद्ध, मङ्गल एवं शनि की आयु आधा-आधा पल्य है और ताराओं का आयु प्रमाण पल्य का चौथाई भाग है। अपनी कान्ति से अन्धकार को नाश करने वाले इन ज्योतिषियों के शरीर का प्रमाण सात-सात धनुष है। 310 रइधू पास. 5/21 311 रइथ: पास. धना-2 312 वही 5/22/1 313 "ज्योतिष्का : सूर्याचन्द्रमसग्रहनक्षत्रप्रकीर्णक तारकाश्च ।। सर्वार्थसिद्धि, अध्याय-4 सूत्र. 12,पृ. 179 314 वही, हिन्दी व्याख्या. पृ. 179
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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