SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्योतिष्क देवों के विमानों का प्रमाण : चन्द्रमा का विमान एक योजन प्रमाण है। उससे कुछ कम सूर्य विमान का प्रमाण है। शुक्र का विमान एक कोस है तथा बृहस्पति का विमान उससे एक चौथाई कम है। शेष ज्योतिष्क देवों के विमानों का प्रमाण आधा एवं चौथाई कोस माना गया है। तारों की दूरी में भेदः तारों की दूरी में तीन भेद होते हैं- उत्तम, मध्यम और जघन्य। तारों में विशेष अन्तर क्रमश: सात, पचास और एक सहस्र माना गया है। ज्योतिष्क देवों के वाहक : चन्द्र और सूर्य के विमानों को प्रति दिशा में अभंग रूप से चार-चार सहस्र सिंह, गजेन्द्र, वृषभ एवं तुरंग निरन्तर चलाते रहते हैं। वे यानों के वाहक उन देवताओं के भृत्यदेव हैं। गृहों के विमानों के आठ सहस्त्र (देव) वाहक हैं और नक्षत्रों के चार सहन, तारों के विमानों के दो सहस्र देववाहन कहे गये हैं।915 गति : वे ज्योतिष्क देव आकाश को घेरते हुए इक्कीस अधिक ग्यारह सौ योजन तक कनकाचल को छोड़कर प्रदक्षिणा दिया करते हैं।316 स्वर्ग कल्पों का वर्णन : सुदर्शन पर्वत के ऊपर केश के अग्रभाग प्रमाण अन्तराल पर ऋजु विमान स्थित है। वही प्रमाण ढाई द्वीप का है। उसके सोलह स्वर्ग स्थान हैं: 1. सौधर्म, 2. ईशान, 3. सनत्कुमार, 4. 'माहेन्द्र, 5. ब्रह्म, 6. ब्रह्मोत्तर, 7. लान्तव, 8. कापिष्ठ,9. शुक्र, 10. महाशुक्र, 11, शतार, 12. सहस्रार, 13. आनत, 14. ग्राणत, 15. आरण और 16. अच्यत। अधस्तन मध्यम और ऊर्ध्व नामों से विहित नौ ग्रेवेयक हैं। उनके ऊपर नवविध अनुत्तर हैं और उसके भी ऊपर श्रेष्ठ सर्वार्थसिद्धि · स्वर्ग है, उसके भी ऊपर ब्रह्मलोक कहा गया है। पटल संख्या: सौधर्म और ईशान के इकतीस विपुल पटल होते हैं। उसके ऊपरी युग्म सानत्कुमार-माहेन्द्र में सात, ब्रह्म-ब्रह्ममोत्तर में चार, लान्तव-कापिष्ठ में दो, 315 रइधू : पास.5.22 316 वही घत्ता-93 RASIRSICSIReseSROSTS 222 RASISTASSkexestories
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy