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________________ भवनवासी देवों के शरीर का प्रमाण : जिनेन्द्र देव ने भवनवासी देवों में से असरकुमार देवों के सुन्दर शरीर का प्रमाण पच्चीस धनुष कहा है। शेष नौ भवनवासी देवों के शरीर का प्रमाण दसदस दण्ड है।304 भनववासी देवों का आयु प्रमाण : भवनवासी देवों में से अतुर कुमारों की माला , एक मागा प्रमाण नाग कुमारों की तीन पल्य, हेम कुमारों की अढ़ाई पल्य तथा द्वीप कुमारों की सुन्दर दो पल्य की आयु है। शेष भवनवासी देवों की आयु का प्रमाण पूर्वापेक्षा आधा-आधा पल्य कम-कम अर्थात् डेढ़ पल्य प्रमाण जानना चाहिए।305 तथा जधन्य आयु की स्थिति दस हजार वर्ष मानी है 1906 भवनवासी देवों की पट्ट देवियाँ और उनके रूप : सभी भवनवासी देवों की पाँच-पाँच पट्ट देवियाँ कही गई हैं। असुर . कुमार-त्रिक में उनकी पट्ट देवियाँ रति क्रीड़ा के आवेग से आठ-आठ हजार रूप बनाती हैं। शेष देवों की पट्टदेवियाँ छह-छह सहस्र रूप बनाती हैं और अद्भुत सुखों को भोगतो हैं।307 अवधिज्ञान का क्षेत्र: सभी भवनवासी देवों के अवधिज्ञान का क्षेत्र असंख्य कोटि योजन प्रमाण होता है।308 व्यन्तर देव : जिनका नाना प्रकार के देशों में निवास है, वे व्यन्तर देव कहलाते हैं।309 वे किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत एवं पिशाच के भेद से आठ प्रकार के हैं। उनके निवास स्थान तीन प्रकार के हैं-पुर, आवास और भवन। ऊपर वालों 304 असुरह देह पमाणु वि दिलउ, धागुह पंचवीसह सुमणिद्गुर। से साह वि दहंदर पमाणिक, पामजिर्णै णाण जाणिउ" पास.5/2017-8 305 वही, 5/20/9-11 306 सर्वार्थसिद्धि 4:37 पृ. 194 307 रइधू : पास. 5:20/12.14 308 वहीं 5:20/15 309 "विविधदेशान्तराणि येषां निवासास्ते व्यन्तरराः । सर्वार्थसिद्धि- संस्कृत टीका 463. पृ.179 assesesxeSRASISASReses 220 kesesexSRASNASIASIS
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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