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________________ सुलोयणाचरिउ : प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के पुत्र भरत के सेनापत्ति जयकुमार की पत्नी सुलोचना के चरित को लेकर देवसेन ने सुलोवणाचरिउ की 23 सन्धियों में रचना की। कवि ने अपने पृर्ववती कवियों में पुष्पदन्त का भी उल्लेख किया है। अत: ये पुष्पदन्त के बाद और 1315 ई. से पूर्व ही किसी समय उत्पन्न हुए माने जा सकते हैं। पज्जुपणचरिउ : 'पजुण्णचरिउ' सिंह विरचिता । सन्धियों का अप्रकाशित काव्य है। इसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित्र ग्रथित है। प्रो. हीरालाल जैन ने ग्रन्थ का काल इंसा की 12 वीं सदी का पूर्वार्द्ध माना है।17 णेमिणाहचरिउ : श्वेताम्बर आचार्य हरिभद्रसूरि ने 'मिगणाह चरिउ' की रचना की उसी का एक अंश डॉ. हर्मन जैकोबी ने जमनी से सनत्कुमारचरित' के नाम से प्रकाशित किया है। कवि ने ग्रंथरचना अणाहल पाटल पत्तन में वि.सं. 1216 में की थी कृत्ति की भाषा प्राचीन गजगती के चिलों से युक्त गुर्जर अपभ्रंश है। जिणदत्तचरिउ : जिनदत्त की कथा को आधार बनाकर कविवर लाखू ने जिणदत्तचरिंउ' की रचना की। इसमें श्रीमतो और जिनदत्त के प्रेम की परीक्षा होती है और दोनों अपने प्रेम में दृढ़ रहते हैं तथा अन्त में मिलते हैं। कवि पुया अंशोभृत सिरिधर धाम विरदा के पुत्र थे। इन्होंने बिल्लरामिपुर में कृति की रचना वि. सं. 1275 में की थी।18 णेमिणाहचरिउ : कवि लक्खण ने बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ को लेकर 'णेमिणाहचरिउ' की रचना की। इस कृति में धर्म और उपदेश के उपकरणों के साथ नगरों के वर्णन, राजमती के वियोग वर्णन में काव्य की पर्याप्त झलक मिलती है। प्रत्येक सन्धि की पुष्पिका में कवि ने अपने को रयण (रत्र) का पुत्र कहा है।19 इस ग्रन्थ को 17 हरिवंश कोछड़ : अपभ्रंश साहित्य पृ. 221, 222 18 प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव, पं. 145. 146 19 वही पृ. 148-149
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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