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हस्त लिखित प्रति वि.सं. 1510 की लिखी उपलब्ध हुई है। अत: ग्नन्थ रचना इससे पूर्व अवश्य हुई। बाहुबलिचरिउ : ___ 18 सन्धियों में समास बाहुबलिचरिउ धनपाल को महत्वपूर्ण कृति है। इसमें प्रथम कामदेव बाहुबलि का चरित्र ग्रथित है। कृति की रचना कवि ने गुर्जर देशान्तर्गत चन्दवाड नगर के राजा सारंग के मन्त्री यदुवंशी वासाहर की प्रेरणा से की थी और उन्हीं की कृति समर्पित की है। कृति वैशाख शुक्ल त्रयोदशी सोमवार स्वाति नक्षत्र सं. 1454 विक्रमी में समाप्त हुई।20 चंदप्पहचरित:
ग्यारह सधियों में विभक्त "चंदप्पहचरिउ'' यश: कीर्ति की रचना है। इसमें कवि ने भगवान चन्द्रप्रभ के चरित्र का वर्णन किया है। कृति में इतिवृत्तात्मकता की प्रधानता है। कहीं-कहीं कुछ काव्यात्मक स्थल भी मिल जाते हैं। महाकवि रइधू के चरित काव्य :
महाकवि रइधू ने अनेक रचनाओं का प्रणयन किया। इनमें से बलहद्दचरिउ, मेहे सरचरिउ, जसहरचरिउ, पज्जुण्णचरिउ, करकंडचरिउ, सावयचरिउ, सुकोसलचरिउ, पासणाहारउ, सम्मदइजिणचरिउ, सुदंसणचरिठ, घण्णकुमारचरिउ, अरिट्ठणेमिचरिंड, जीमंधरचरिउ तथा संतिणाहचरिउ नामक चरित काव्य प्रसिद्ध हैं। इनमें से पज्जुण्णचरिठ, सुदंसणचरिउ तथा करकण्डचरिउ अनुपलब्ध हैं। संतिणाहचरिउ :
कवि महिन्दु ने संतिणाहचरिउ की रचना की। यह योगिनीपुर (दिल्ली) में बादशाह बाबर के राज्यकाल में वि.स. 1587 ई. में हुई। इसमें चोपाई, सोरठा आदि छन्दों का प्रयोग कवि ने किया है।21 सिरिवालचरिउ :
नरसेन विरचित सिरिवालचरिड 82 कड़वकों की एक सुन्दर प्रेमकथा है। आत्मविश्वासी, दृढ़ साहसी, धार्मिक तथा अनेक गुणों से युक्त श्रीपाल का चरित्र
20 प्राक़त और अपभ्रंश साहित्य तथा उनका हिन्दी साहित्य पर प्रभार, पृ. 149. 150 21 अनेकान्त वर्ष 5, किंग्ण 6-7. पृ. 153-156