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रात्रि भोजन त्याग :
मनुष्यों को दिन में ही भोजन कर लेना चाहिए, रात्रि में उसकी मन में आकांक्षा भी नहीं करना चाहिए। जिस रात्रि में क्षुधातुर निशाचर किलकिलाते रहते हैं, रवि पश्चिम समुद्र में लुप्त हो जाता है, मकड़ी, मच्छर एवं मक्खियों से भरा आकाश भी दिखायी नहीं देता, उस रात्रि में बुद्धिमान् व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए।78 अनछना जल का त्याग : ____ अनछना जल किसी को भी नहीं देना चाहिए, स्वयं भी कभी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि दो घड़ी वाले जल में सम्पूर्छन प्राणी उत्पन्न हो जाते हैं।79 मनि धर्म : ___ मुनि संसार रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले सूर्य के समान0 और वीतरागी81 होते हैं। मुनिराज बाह्य आभ्यन्तर तप के भार को धारण करते हैं, विषम परीषहों को भी सहन करते हैं, रत्नत्रय का ध्यान करते हैं, तप से शरीर को तपाते हैं, करण (त्रिगुप्ति) के द्वारा मन के प्रसार को रोकते हैं। 2 राग-द्वेष को तिरस्कृत करते हैं, जीव- अजीव रूप पदार्थों को जानते हैं,83 केशलोंच करते हैं।84 मुनि का मन अत्यन्त निर्मल होता है।85 मुनि के लिए निग्रन्थ (जिग्गंथ)86 शब्द का भी प्रयोग हुआ है। भगवान पार्श्व ने अपनी दिव्यध्वनि में कहा है कि जो परिग्रह रहित निग्रंन्ध साधु हैं, जिन्होंने काम के तीव्र दाह को शान्त कर दिया है, स्वाध्याय एवं ध्यान में अहर्निश प्रवीण हैं, मांस तथा पक्ष में पारणा लेने के कारण क्षीणकाय हो गये हैं, मोह, माया एवं प्रमाद को छोड़ दिया है, उनके चरणों में भावपूर्वक प्रणाम करो, क्योंकि मोक्षप्राप्ति के लिए निर्ग्रन्थ मार्ग को छोड़ अन्य मार्ग नहीं है।8?
78 रइधु : पास. 58 79 वहीं 1/25 १० वहीं 6:12:9 8] वहीं 6:12:13 82 वही घत्ता 124 83 वही 6/20] 84 वही 421 85 वहीं 15 86 वहीं 111 87 वही 5:3