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मुनि की विशेषताये8 : __1. मुनि प्रायः गिरि कन्दराओं में रहते हैं।
2. वे बाह्याभ्यन्तर परिग्रह का त्याग करते हैं। 3. रत्नत्रय का ध्यान करते हैं। 4. विषय परीषहों को सहन करते हैं। 6. तप से शरीर को तपाते हैं। . 7. मन के प्रसार (चंचलता) को रोकते हैं। 8. राग और द्वेष से रहित होते हैं। 9. जीव-अजीव रूप पदार्थों को जानते हैं। 10. अहर्निश शुद्धात्मा की आराधना करते हैं।
11. मासोपवास भी करते हैं। ___12. ग्यारह अंगों (जिनवाणी) का अभ्यास करते हैं।
13. कायोत्सर्ग करते हैं। 14. क्षमागुण के धारक और काम के दिशाम होते हैं। मुनियों के अट्ठाईस मूलगुण : ___मुनिराज पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियों का निरोध, समता, वन्दना, स्तुति, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान; ये छह आवश्यक, स्नान त्याग, दन्त घावन त्याग, भूमि शयन, केशलोंच, नग्नत्व, खड़े होकर आहार लेना, दिन में एक बार भोजन लेना-ये सात व्रत, इस तरह अट्ठाईस मूल गुणों का पालन करते हैं।89 पाँच महाव्रत :
हिसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों के पूरी तरह त्याग करने को पाँच महाव्रत कहते हैं।91 पाँच समिति :
ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और उत्सर्ग, ये पाँच समितियां हैं। 2 इनका खुलासा इस प्रकार इस प्रकार है
88 1 से 14 तक देखें पास. : रधु 6/19,घत्ता 124 एवं 6/20 89 आचार्य कुन्धुसागर : मुनिधर्मप्रदीप, . 4 90 रइधू : पास. 3:20
91 तत्त्वार्थसूत्र 771-2 ___92 "इंर्या भाषेषणादाननिक्षेपोत्सर्गः समितयः।'-तत्त्वार्थसूत्र 9:5
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