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चोरी :
तस्कर दूसरे के द्रव्य को चुराकर काँपते हए उसे छिपाकर बाहर भाग जाता है। अत्यन्त व्याकुल होकर घने वन में जाकर वहाँ अपने शरीर को संकुचित कर निर्जन स्थान में छिप जाता है। यदि कभी वह किसी प्रकार उस जंगल से निकलता है तो सोचने लगता है कि कोई मुझे देख न ले, कोई जाग न उठे! अत्यन्त साहस करके यदि वह गया भी, तो फिर कहीं कोतवाल उसे देख लेता है और उसे बाँधकर राजा के सम्मुख लाकर दिखा देता है और तब उसमें वह (राजा) लाखों दगुणों की संभावना करता है। राजन्य वर्ग के लोगों द्वारा उसे शूली पर चढ़ा दिया जाता है, हाथ, पैर या शिरच्छेद कर दिया जाता है, मारे जाते हए भी उसे कोई नहीं बचाता और वह पापी मरकर शीघ्र ही नरक को प्राप्त करता है। परस्त्री सेवन का त्याग : ___परस्त्री के दुर्गति के द्वार के समान रूप को चित्त में धारण मत करो।76 कामुक व्यक्ति परस्त्रियों को देखते ही कामदेव के बाणों से विंध जाता है। वह अपने मन में तिल-तिल करके जलता रहता है। उन्हें प्राप्त न कर वह दुराश, ने भग्न हो जाता है, इस प्रकार वह बहुत से पापों को अर्जित करता है। विरहातुर होकर वह दुखी होता है, हँसता है, त्रस्त होता है और वह कामी देव एवं गुरु को भी नहीं मानता। दूसरों की प्रियतमा को प्राप्त न कर वह कलपता रहता है और अहर्निश मदन ज्वाला से सन्तप्त होता है। एकान्त प्रदेश में यदि बड़ी कठिनाई पूर्वक कभी प्राप्त कर भी लिया तब भय से दानों का मन बड़ा क्षुब्ध रहता है कि कहीं कोई देख न ले या बाँध न ले। जहाँ इतना बड़ा दुख है, वहाँ सुख कसा अथवा उसे बाँधकर राजा के पास ले जाया जाता है और सिर मुँड़ाकर उसे गधे की पीठ पर बैठाया जाता है, फिर सिर पर झाड़ बाँधकर उसे नगर में भ्रमण कराते हैं अथवा उसका अवयव (अंग) ही भग्न कर दिया जाता है; यह सब जानकर परस्त्री का त्याग कर देना चाहिए और अपने शुद्धकुल को नहीं लजाना चाहिए।
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रइधू : पास. 5:12 वही, घत्ता-83 वही 513