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________________ ब्रह्मचर्यव्रत की पाँच भावनायें : स्त्रीरागकथा श्रवणत्याग - स्त्रियों में राग बढ़ाने वाली कथाओं के सुनने का त्याग करना। तन्मनोहराङ्गनिरीक्षणत्याग - स्त्रियों के मनोहर अंगों के देखने का त्याग करना। पूर्वरतानुस्मरण त्याग अव्रत अवस्था में भोगे हुए विषयों के स्मरण का त्याग करना। वृष्येष्टरस त्याग - कामवर्धक गरिष्ठ रसों का त्याग करना। स्वशरीरसंस्कार त्याग . अपने शरीर के संस्कारों का त्याग करना। को गाँध63 रन दिला की नामें हैं। परिग्रह त्यागवत की पाँच भावनायें : ___ स्पर्शन, रसना, ध्राण, चक्षु और श्रोत्र (कर्ण) इन पाँच इन्द्रियों के इष्ट, अनिष्ट विषयों में क्रम से रागद्वेष का त्याग करना। ये पाँच64 परिग्रह त्यागवत की भावनायें हैं। सप्तव्यसन15 त्याग : व्यसन की परिभाषा: जहाँ अन्याय रूप कार्य को बार-बार सेवन किये बिना चैन नहीं पड़े, ऐसी आदतों का पड़ जाना व्यसन कहलाता है अथवा व्यसन नाम आपत्ति का भी है, इसलिए जो घोर दुःख को उत्पन्न करे, अत्यन्त विकलता को उत्पन्न करे, वही व्यसन कहलाता है 6ि जिस कार्य को एक बार करने पर भी उचित-अनुचित के विचार रहित हो पुनः प्रवृत्ति हो वह व्यसन कहलाता है।67 व्यसन से तात्पर्य बुरी आदतों, बुरे कार्यों से है। लोक में निंद्य सात व्यसन निम्न प्रकार कहे गए 63 'स्त्रीगिकथा श्रवणतन्मनोहराङ गनिरीक्षण पूर्वरतानुस्मरण वृष्येष्ट रसस्वशरीर संस्कारत्यागाः पञ्च।" - तत्वार्थ सूत्र 717 64 "मनोज्ञापनोजेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्चा" वहीं 7/B 65 रइधू : पास. 1/3,3/24 66 मूलाचार 67 स्यावादम जरी PastessesSMSIATES 181 CAKesrussesses
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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