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________________ अहिंसाणुव्रत की पाँच भावनायें : वाग्गुप्ति - वचन को रोकना। मनोगुप्ति - मन की प्रवृत्ति को रोकना। ईर्यासमिति - चार हाथ जमीन देखकर चलना। आदाननिक्षेपण समिति-- भूमि को जीवरहित देखकर सावधानी से किसी वस्तु को उठाना, रखना। आलोकित पानभोजन : देख-शोधकर भोजनपान ग्रहण करना। इस प्रकार ये पाँच60 अहिंसाव्रत की भावनायें हैं। सत्यव्रत की पाँच भावनायें : क्रोधप्रत्याख्यान - क्रोध का त्याग करना। लोभप्रत्याख्यान - लोभ का त्याग करना। भीरुत्वप्रत्याख्यान - भय का त्याग करना। हास्यप्रत्याख्यान .. हास्य का त्याग करना। अनुवीचिभाषण - शास्त्र की आज्ञानुसार निर्दोष वचन बोलन। ये पाँच1 सत्यव्रत की भावनायें हैं। अचौर्यव्रत की पाँच भावनायें: शून्यागारावास - पर्वतों की गुफा, वृक्ष की कोटर आदि निर्जन स्थानों में रहना। विमोचितावास - राजा वगैरह के द्वारा छुड़वाए हुए दूसरे के स्थान में । निवास करना। परोपरोधाकरण .. अपने स्थान पर ठहरे हुए दूसरे को नहीं रोकना। मैक्ष्यशुद्धि - शास्त्र के अनुसार भिक्षा की शुद्धि रखना। सधर्माविसंवाद .. सहधर्मी भाईयों से यह हमारा है, वह आपका है, इत्यादि कलह न करना। ये पाँच62 अचौर्याणुव्रत की भावनायें हैं। 60 तत्वार्थसूत्र 714 61 "क्रोधलोभभौरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनु वीचिभाषणं च पञ्च ।" - वहीं 725 62 "शून्यागार विमोचितावासपरोपरोधाकरणभैक्ष्यशुद्धि सश्रमविसंवादाः पञ्च।'' वहीं 7/6 xsxasistemasxeSISTAAS180 SASRASHARASIMITES
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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