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________________ 25 2. सामायिक शिक्षाव्रत : " सभी जीवों को मैं नियम से क्षमा करता हूँ, वे भी मुझे प्रसन्न होकर क्षमा करें" ऐसा विचारकर सभी सावद्य कर्मों का त्याग करे तथा जिन भगवान् के सम्मुख बैठकर निष्कपट भाव से पर्यङ्कासन भारकर, मन को स्थिर करके और सुखकारी रत्नत्रय का स्मरण करके अपनी शक्तिपूर्वक संकल्प छोड़कर सामायिक करे। ज्ञानी व्यक्ति सिद्ध, बुद्ध, चेतन, पवित्र, अमूर्त, निरञ्जन एवं निर्दोष आत्मा का भावनापूर्वक ध्यान करे। निश्चय से इसे सामायिक शिक्षाव्रत समझना चाहिए। 55 3. प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत : • अष्टमी, चुतर्दशी एवं पर्व के दिनों में आरम्भ कार्यों में संवर करें, सप्तमी एवं नवमी को भव्यजन लालसा छोड़कर एक बार भोजन करे। आशा छोड़कर तथा जिन भगवान को प्रणामकर मन एवं वचन की शुद्धिपूर्वक पञ्चमी का उपवास ग्रहण करे। उस दिन सावध कर्मों का त्याग करे और अहर्निश शुभ धर्मध्यान में रत रहे, तदनन्तर सत्पात्र को भोजन कराकर ग्रास ले, यही प्रोषधोपवास नामक शिक्षावत है |56 4. अतिथि संविभाग व्रत : गुणवान् व्यक्ति को घर के दरवाजे पर आये हुए सत्पात्र को पड़गाहना चाहिए। अपनी शक्तिपूर्वक उसे बड़े ही गौरव के साथ मान ( कषायादि) की छोड़कर दान देना चाहिए। यही अतिथि संविभागव्रत है 57 व्रत की परिभाषा और उसकी भावनायें : हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, इन पाँच पापों से विरक्त होने को व्रत कहते हैं । 58 से व्रत भावनाओं से युक्त हैं। प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनायें होती हैं, 59 जो इस प्रकार हैं 55 रइधू पास 5/7/16 56 वहो 5017-11 57 वही 5/7/12 14 58 हिंसानृतस्तेथाहापरिग्रहेभ्यो त्रिरतिर्व्रतम् । 59 तस्थैयांर्थ भावनाः पंच पंच 1792 तत्वार्थसूत्र 7/1 तत्वार्थसूत्र 7:3
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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