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को भी काम में लाने हेतु न दे। अनेक पाप के कारणभूत महुआ आदि एवं लाख, विष, लोहा तथा सन आदि वस्तुयें न बेचे। माजरि कुत्ता, नकुल, गिद्ध आदि सैकड़ों जीवों के प्राणों का हरण करने वाले (शिकारी) तथा माँसाहारी पापी दासी एवं पासों को न रखे और पाते, इ के प्रति माध्यस्थ भाव ही धारण करे 3.भोगोपभोग परिमाणव्रत :
विषयासक्ति को कम करने के लिए हमेशा भोगोपभोग सम्बन्धी वस्तुओं का परिमाण करना, सो भोगोपभोग परिमाणवत हैं।50 अपने मन को स्थिर करके भोगों एवं उपभोगों की संख्या सीमित करना चाहिए जिनसे संवर बढ़ता है, संसार रूपी वृक्ष जल जाता है और सुस्थिर (मोक्ष) पद प्राप्त होता है। शिक्षाव्रत शिक्षाव्रत की परिभाषा:
जिनके प्रभाव से विशेष श्रुतज्ञान का अभ्यास हो या जिससे मुनिव्रत पालन करने की शिक्षा मिले, उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं।52 शिक्षाव्रत के भेद :
शिक्षाव्रत चार प्रकार के होते हैं-1-देशव्रत, 2-सामायिक, 3-प्रोषधोपवास, 4 -अतिथिसंविभाग (वैयावृत्य)53 1. देशव्रत :
दिग्वत में धारण किए गए विशाल देश का दिवस-पक्षादि काल की मर्यादा से प्रतिदिन त्याग करना, सो अणुव्रतधारियों का देशव्रत होता है।54
49 रइधु : पासणाहचरिंउ 5/6 50 समन्तभद्रकृत रत्नकरण्डनावकाचार 4/82 51 रइधू : पास. घत्ता-77 52 रनकरण्डश्रावकाचार, भावार्थ 5/91 53 वही 5/9] 54 देशावकाशिक स्यात्कालपरिच्छेदेन देशस्य ।
प्रत्यहमणुप्रताना प्रतिसंहारो विशालस्य ॥ वही :92 sterestassiusmastistes) 178MSTShasteshsrussy