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________________ : 1. दिग्व्रत, 2. अनर्थदण्डव्रत और 3. भोगोपभोगपरिमाणव्रत | 44 1. दिग्व्रत : करता दिशाओं, विदिशाओं का हुए एक विरोध करना एवं दिन-प्रतिदिन प्रभातकाल में नियम ग्रहण करना, प्रथम ( दिग्वत नामक ) गुणव्रत है, जो कि पाप का हरण करने वाला है । 45 जिनभासित धर्म का जहाँ पालन न किया जा सके, वहाँ भव्य जन आजन्म न जाय, पापासक्तमनवाले खस बब्बर, भील, पुलिन्द आदि जहाँ निवास करते हों, मन को स्वप्न में वहाँ नहीं जाने देना चाहिए 46 2. अनर्थदण्डव्रत : प्रयोजन रहित पाप बंध के कारणभूत कार्यों से विरक्त होने को अनर्थ दण्डव्रत कहते हैं | 47 अनर्थदण्डव्रत के भेद : अनर्थदण्डव्रत पाँच प्रकार का होता है- पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुः श्रुति, प्रमादचर्या 148 (1) पापोपदेश (2) हिंसादान (3) अपध्यान दूसरों के प्रति बुरा विचारना । (4) दु: श्रुति (5) प्रमादचर्यां तीन पापबंधके कारणभूत कार्यों का उपदेश देना। हिंसा के कारणभूत हथियारों व उपकरणों को देना। - रागादिवर्धक खोटे शास्त्रों का सुनना । निष्प्रयोजन यहाँ वहाँ घूमना, पृथ्वी खोदना, वनस्पति आदि का तोड़ना। अनर्थदण्डव्रत धारी के लिए करणीय बातें 44 अनर्थदण्डव्रत का धारी जीव असि, छुरिका, फरसा, कुन्त आदि वध करने वाले आयुध न तो लेवे और न बेचे। अपनी कुदाल, कुल्हाड़ी एवं फावड़ा किसी 47 48 44 45 रइधू पास 5/6/1-2 46 कही 5/6/3--5 रत्नकरण्ड श्राकाचार 4/67 रत्नकरण्ड श्रावकाचार 4/74 वही 4/75 pesteststresses 177 (४४४४४
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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