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________________ जुआ : धृष्ट, पापिष्ठ एवं दर्पिष्ठ द्यूतान्ध जन्म भर भी क्लिष्ट कर्मों का अनुसरण नहीं करता। वह गुणहीन जुआरी व्यक्ति घर का द्रव्य चुराचर ले जाता है और उस सबको हारकर, भय त्रस्त होकर भटकता रहता है। पत्नी, पुत्री और बहिन उसका विश्वास नहीं करती, सभी लोग उसे देखकर उसका उपहास करते हैं। उसके लिए न धर होता है और न गृहिणी, न भूख, न प्यास और न निद्रा और वह लोगों के घरों के छिद्र ढूंढता रहता है। जुआरी व्यक्ति पीटा जाता है, लूट लिया जाता है और (कारागार) में बन्द कर दिया जाता है, यह सोचकर जुए का व्यापार (कार्य) छोड़ दो।68 'मांसाहार : जीवों को मारने से वसा, रुधिर, मेदा एवं अस्थिमिश्रित माँस की उत्पत्ति होती है। जो पापी व्यक्ति निर्दोष तिर्यञ्च का वधकर मन में रागपूर्वक उसके मांस का भक्षण करता है, वह मनुष्य के रूप में प्रत्यक्ष यम कहा जाता है। ऐसा जानकर तथा उसकी निकृष्ट स्थिति सुनकर मांस भक्षण को छोड़ देना चाहिए।69 मद्यपान : मद्यपान से उन्मत्त व्यक्ति भटकता रहता है। लज्जा छोड़कर वह नीच कार्य करने लगता है। स्त्री के गले में बाँह डालकर उसे बुलाता है और माता अथवा बहिन आदि जो मन में आता है, वही कहकर पुकारता और भगता है। भार्या को देखकर "माँ" इस प्रकार कहकर उसे प्रणाम करता है। सुरारसपान के कारण चक्कर काटता हुआ लडखड़ाकर चलता एवं बल खाता हुआ वह मार्ग के मध्य में ऊपर मुख किये हुए लेट जाता है। कोई भी व्यक्ति सम्मान के साथ उसे नहीं देखता। श्वान उसके मुँह में शीघ्र ही पेशाब कर देता है, किन्तु वह उसको भी श्रेष्ठ सुवर्णरस (मदिरा) समझ लेता है और हे मित्र ! कल्याणकारी अमृतपान के समान यह मदिरा और दो, और दो;" इस प्रकार कहता है, व्यर्थ बोलता हुअ वह सभी के लिए अपना माथा झुकाता है एवं गाता हुआ भी लड़खड़ाता हुआ घूमता रहता है। यह जानकर भी जो व्यक्ति रसनेन्द्रिय का संवरण कर तत्कार 69 69 70 रइधू : पास. 5/981-5 वही 5/9/6--8 वही 5/10
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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