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धर्म की आवश्यकता : ___ मानव जोबन के प्रमुख चार उद्देश्य निर्विवाद हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्षा इस चारों में से मोक्ष का मानव जीवन का चरम लक्ष्य माना गया है। इस दु:खमयी संसार का प्रत्येक जीव शाश्वत सुख की निरन्तर अभीप्सा करता है
और उसकी प्राप्ति हेतु अनेकानेक उपाय भी। किन्तु धर्म रूप श्रेणी का आश्रय लिए बिना उसके चे उपाथ 'गृगमरीचिका' बनकर रह जाते हैं। अर्थ और काम सांसारिक दुःखों को बढ़ाने में साधक ही बनते हैं. ऐसी स्थिति में एक धर्म ही ऐसा मार्ग बचता है जो व्यक्ति को परम शान्ति के आगार. गोक्ष में पहुँचाने का मार्ग बताता है और कर्ममल कलंक से युनः आत्मा को शुद्ध एवं स्वभावगत करके मोक्ष में पहुँचाने का काम करता है। धर्म का माहात्म्य :
दयानधान धर्म छोड़कर प्राणी के लिए इस संसार में कोई अन्य सहायक नहीं है। व्यक्ति धर्म के बिना चौरासी लाख योनियों में भटकता रहता है। दयाप्रवर धर्ग ही सारभूत है, जो उसे धारण करअपने मन को स्थिर नहीं करता, वह स्वयं अपने को लगता है।10 धर्म ही लाखों दु:खों का निवारण करने वाला है। धर्म ही दुस्तर भवसमुद्र से पार उतारने वाला है। धर्म मे ही तेज, रूप बल एवं विक्रम प्राप्त होते हैं। धर्म से ही दीर्घ आयुष्य एवं पराक्रम प्रास होता है। धर्म से इन्द्र, फणीन्द्र एवं नरेन्द्र की गति मिलती है और धर्म से हो आकाश में गमन करने वाला रवि एवं चन्द्र होता है। धर्म से ही संसार परम्परा का नाश होता है, धर्म में ही मोक्ष लक्ष्मी की प्रामि होती हैं। श्रमं ही कल्याणमित्र है. धर्म ही परम स्वजन है। धर्म से कोई भी व्यक्ति दुर्जन नहीं दिखाई देता। ध से इस संसार में क्या क्या प्राप्त नहीं होता? धर्म में ही कामधेन घर में दही जाती है अर्थात धम कामधेन के समान ही इच्छित फल का देने वाला है।11 धर्म के बिना वह मनुष्य भाव विफान है। यह समझकर वैसा उपाय करो जिससे पाप रूपी वृक्ष को काटकर शीघ्र ही परमात्म पद प्राप्त किया जा सके।12
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8 रइभ : पाम . मना -10 । वही : 165 11 वी धना 47 11 वहीं 323 | वही, घल्ला -48
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