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________________ सर्वोत्कृष्ट धर्म : 'पासणाहचरिउ' के कर्ता महाकवि रइध जैन धर्म के अनुयायी और जैन तत्वों के महान जाता थे अत उन्होंने जैनधर्म को ही सर्वोत्कृष्ट धर्म माना था। उनकी इस भावना की झलक पासणाचरिर' में भी दिखाई देती है, यथा जिनवर की नागी सुनना.13 दया करना,14 क्षमा पाव रखना,15 संत्रर धारण करना 16 मधु मद्य माँस का त्याग 17 सत्य बोलना आदि कार्यों को करना ही सवोत्कृष्ट धर्म है। जिन धर्म की महत्ता बताते हा वे कहते है कि अनेक सुखों को प्रदान करने वाले जिनधर्म रूपी रसायन का जिसने नरभव में मेवन नहीं किया त्रास दुर्लभ रत्न के समान प्राप्त नर जन्म को हार जाता है और शुभगति को दूर कर देता है।19 धर्म के भेद : धर्म के दो भेद हैं-सागार धर्म20 और मुनि21 धर्म (अनगार धर्म) इन दो प्रकार के धर्मों को मनुष्यों के दो आश्रम भी कहा गया है।22 सागार धर्म के पालक गृहस्थ अवस्था में रहकर कषायों को मन्द करने और इन्द्रियों के विषय जीतने के साधन रूप अगन्नता का पालन करते हैं। अनगार धर्म के पालक वीतरागी मुनि होते हैं, वे गृहस्थपने का त्याग, सर्वथा आरम्भ परिग्रह तथा विषय - कषाय से रहित होकर निज शुद्धात्मस्वरूप की सिद्धि के अर्भ महाव्रत, तप, ध्यान आदि की साधना करते हैं। गृहस्थ ( श्रावक ) धर्म : जो जिनवर की वाणी सुनते हैं, वे प्रावक कहलाते हैं |23 श्रावक आध्द जैन गृहस्थ के लिए रूढ़ है। आचार्यकल्प एं. आशाधर जी के अनुसार- न्यायपूर्वक - - 13 ग्इ : पाम 18 16 14 यहां 3/21 9 15 वहीं 3:215 16 वही 372| 8 17 | 5:18 बहो 55 19 बही 677 29 वही 5.7.5 2143 22 पदाचरित 5/126 23 रा पास. 18 16 PASSxsxesxesiestusess) 173 kmsrustestostushasaster
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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