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________________ (अपने) हाथ से दर्पण दिखाती थी। कोई पावं में स्थित होकर सुन्दर चैंबर दुराती थी।68 कलायें : पासणाहचरिउ में गीत, नृत्य, वादित्र और मूर्तिकला का उल्लेख प्रास होता है। गीतकला : द्वितीय सन्धि में कहा गया है कि कोई शची सुन्दर गीतों से वामादेवी के लित्त को मोहित करती थी 6ि9 नृत्यकला : जिनाभिषेक विधि के समय इन्द्र ने सूर्यकान्ति के समान दीप्स स्वर्णभाजन में चित्त को सुख देने वाला, धूमरहित शुद्ध दीपक सजाकर दुन्दुभि के साथ नृत्य किया, मानो वह सहस्र भुजाओं से उन भगवान की पूजा कर रहा हो।70 वाद्यकला : पटही 1.. पार्श्व प्रभु के समवतरण में नटपटु पटह के शब्द के अनुसार आश्चर्यजनक नृत्य कर रहे थे।/2 पटह आवनूस की लकड़ी से बनाया जाता था। उसकी लम्बाई 211 हाथ की है। मध्य में घेरे का नाप 60 अङ्गुल है। दायें मुख का व्यास 11 अंगुल है। बायें मुख का व्यास 10 अङ्गुल है। दाहिनी ओर लोहे का पट्टा होता है। बायीं ओर लताओं का पट्टा लगाना पड़ता है। उसमें चारअङ्गुल दूर लोहनिर्मित तीसरा पट्टा लगता है। दोनों और मृत बछड़े के चमड़े से मढ़ाया जाता है। बायीं ओर के चमड़े के घेरे में सात छिद्र बनाकर उनमें पतली रस्सी से सोने, चांदी आदि से बनाए हुए चार अङ्गुल लम्बे सात कलशों को ढीला बांधा जाता है। दाहिनी ओर से उन्हें फिर उस चमड़े से बाँध दिया जाता है। इसे कोण नामक साधन या हाथ से बजाते हैं। इसी तरह का पटह कुछ छोटा रहे तो उसे देशी पटल या अड्डात्रुज कहते हैं।/3 68 पासणाहचरिठ 2:2 69 वही 212 70 वही 2/13 71 वही 2/6 72 वही 4/15 73 डॉ. रमेशचन्द्र जैन : पद्मारत में प्रतिपादित भारतीय संस्कृति, पृ. 155
SR No.090348
Book TitleParshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendrakumar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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