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कटक (कडय): पद्म चरित' से ज्ञात होता है कि कड़े की आभा से किरणें निकला करती थीं, जिनसे हाथों की हथेलियाँ आच्छादित हो जाती थी 'पासणाहचरिउ' में मणिक्य कडय का उल्लेख है।
कड़िसुन : (कटिसूत्र) कटिबन्धन को कठिसूत्र कहते हैं। मेखला : मणियों की दानेदार करधनी।
हारश्न : इन्द्र ने शिशु या को जो आभूषण पहिनाए, उनमें कण्ठहार में था। हार प्रायः रत्रों या मणियों से गूथें जाते थे। रामायण में हारों को चन्द्ररश्मिय। की सी कान्ति वाला बतलाया गया है।65.
मुकुट (मउड): 'पासणाहचरिउ' की द्वितीय सन्धि में रन्नमुकुट का उल्लेख हुआ है। वस्त्र:
देवदूष्य (देवंग वत्थ) : इन्द्र द्वारा शिशु पार्श्वको देवंग वत्थ (देवदूष्य) धारण कराया गया था67. . .
प्रसाधन : वामादेवी का शचियों द्वारा प्रसाधन उस समय के प्रसाधन के विषय में कुछ प्रकाश डालता है। कोई शची तो वामादेवी का सुन्दर-सुन्दर पदार्थों से उबटन करती थी, कोई-कोई शची क्षीर सागर जाती थी और वहाँ से विशुद्ध जल लाकर उसे स्नान कराती थी। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो वर्षाकाल दुग्ध की वर्षा कर रहा हो। कोई-कोई सुन्दर-सुन्दर निर्मल वस्त्र प्रदान करती थी तो कोई साक्षात् आभरण पहनाती थी। कोई सिर के केशपाशों को द्विरेफ या भ्रमर की आवाज सहित मालती पुष्प की माला से रसाल मस्तक प्रदेश को संवारती थी कोई-कोई कपोलों पर सुन्दर चित्र लिखती थी तो कोई
60 पद्म 33/131 61 पास. 2/14 62 वही 2/14 63 चही 2/14 64 बहो 2/14 65 शान्तिकुमार नानृराम व्याम्म : रामायणकालीन संस्कृति प.60 66 पास. 2/14 67 पास. 2/14